ऐवान-ए-तसलीस में शम-ए-वहदत जले
और जब उन के अज्दाद की सरज़मीं
जिस की आग़ोश में वो पले
तंग होने लगी
जब उसूलों की पाकीज़गी
और गंदा रिवायात में
जंग होने लगी
तो उन्हें आसमाँ से हिदायत मिली
नेक बंद तुम्हारे लिए
ये ज़मीं एक है
उस सफ़र में तुम्हें रिज़्क़ की फ़िक्र है
क्या अनाजों की गठरी उठाए
चरिन्दों परिंदों को देखा कभी
ज़ाद-ए-रह
नेक आ'माल हैं
मेरे अहकाम हैं
मौत का ख़ौफ़ बे-कार है
आख़िरी साँस के बा'द
सब को पलटना है मेरी तरफ़
तुम फ़क़त जिस्म ही तो नहीं
अपने अंदर सुलगती हुई रौशनी
के सहारे बढ़ो
एक ही जस्त में
दस्त-ओ-दरिया की फैली हुई
वुसअ'तें नाप लो
चप्पे चप्पे पे अपने नुक़ूश-ए-क़दम
इस तरह सब्त कर दो
कि उन अजनबियों की हैरत मिटे
और पैहम तआ'क़ुब में दुश्मन जो हैं
उन की ख़िफ़्फ़त बढ़े
मेरे अहकाम की रौशनी
सब के दिल में उतारो
कि ऐवान-ए-तसलीस में
शम-ए-वहदत जले
- पुस्तक : Roshan waraq waraq (पृष्ठ 86)
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