अजब बला-ख़ेज़ मरहला था
रोचक तथ्य
(February 1990)
अजब सफ़र था
अजब पुर-असरार मरहला था
अजीब हंगाम-ए-रह-ए-नवर्दी
अजीब शौक़-ए-जहाँ-नुमा था
न कोई सौत-ए-दरा सदा-ए-रहील थी
और न कोई मंज़िल न कारवाँ था
अजीब ख़ू-ए-सफ़र थी
जो ज़ाद-ए-राह थी
हम-सफ़र थी
रहरव थी
राहबर थी
न दिल में अंदेशा-ए-मराहिल
न ख़ौफ़-ए-जादा
न इंतिज़ार-ए-सवाद-ए-मंज़िल
हर उस तूफ़ान-ए-बाद-ओ-बाराँ
न पाए रह-ए-आफ़रीं में लग़्ज़िश
न राह-ए-गुम-कर्दगी का सदमा
बस एक बेबाक हौसला था
जो सारी हस्ती पे छा गया था
कि जान महशर-ब-दस्त थी
पेच-ओ-ख़म रह-ए-पुर-ख़तर के उक़्दा-कुशा थे
दिल फ़ारिग़-ए-ख़तर था
अजब सफ़र था
अजब बला-ख़ेज़ मरहला था
कि दूर तक
सरहद-ए-उफ़ुक़ तक
समुंद्र-ओ-सब्ज़ा-ज़ार-ओ-वादी-ओ-कोह-ओ-सहरा-ओ-दश्त-ओ-दरिया थे
और मैं थी
मुसाफ़िरत थी
सफ़र बराए-सफ़र था
इक प्यास का समुंदर था
जो रग-ए-जाँ में मौजज़न था
वो अर्सा-ए-मोतबर था
या अहद-ए-मुख़्तसर था
वो जो भी था
इक अजब सफ़र था
अजब बला-ख़ेज़ मरहला था
- पुस्तक : Aatish Zeer-e-paa (पृष्ठ 22)
- रचनाकार : Sajidah Zaidi
- प्रकाशन : Sajidah Zaidi, Aligarah (1995)
- संस्करण : 1995
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