अलीगढ़ यूनिवर्सिटी
मरकज़-ए-इल्म-ओ-हुनर मैकदा-ए-सोज़-ओ-साज़
सज्दा-ए-शौक़ से आबाद है रिंदों का हरम
जाम-दर-जाम है सहबा-ए-जुनून-ए-हिकमत
देखना हो तो कोई देख ले साक़ी का करम
मय-गुसारी का ये अंदाज़ न देखा हम ने
सब के दुख दर्द का एहसास नशे का आलम
एक ही आग से हर रूह जिला पाती है
हो गए एक ही शो'ले में शरारे मुदग़म
अपने हर दौर की तहरीक का आईना लिए
फिर उठाता है अलीगढ़ नई दुनिया में क़दम
राह दुश्वार में इक क़ाफ़िला-ए-निकहत-ओ-नूर
संग-ए-ख़ारा की चटानों के मुक़ाबिल है खड़ा
टूट जाएगा बहुत जल्द तिलसम-ए-इमरोज़
नूर-ए-फ़र्दा के तबस्सुम में बदल जाएगा
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