अंदलीब
ऐ अंदलीब-ए-ज़ेब-ए-चमन ज़ीनत-ए-चमन
हमदम क़लक़-नसीबों की उल्फ़त के मारों की
शीरीं तिरी नवा है अगरचे है पुर-खरोश
दिलकश तिरी सदा है अगरचे है दिल-ख़राश
साज़ों में है वो बात कहाँ जो कि तुझ में है
उल्फ़त कहाँ है उन को किसी से कहाँ है लाग
हे हे किसी के सोज़ से उन को कहाँ है साज़
बे-शुबह उन में लहन है इक ख़ास तौर का
बे-शुबह उन की छेड़ से थर्राती है हवा
लेकिन तिरी सदा से हैं ज़ाहिर ये साफ़ साफ़
आलाम-ए-यास जोश-ए-दिली सदमा-ए-फ़िराक़
या'नी तिरी नवा है वो थर्राए जिस से दिल
चलती है जिस घड़ी कि शब-ए-माह में सबा
और जब कि मस्त हो हो के हिलती है शाख़-ए-गुल
इस वक़्त तू जो करती है फ़रियाद हम-सफ़ीर
बेताब और करती है हिज्राँ-नसीब को
लेकिन तू जिस के वास्ते रहती है बे-क़रार
होता है इस का क़ुर्ब महीनों तुझे नसीब
होती है हर बहार में तुझ को नई बहार
उन को तू देख दिल को है जिन के किसी से लाग
माशूक़ का मगर नहीं नज़ारा तक नसीब
बरसों नहीं है कूचा-ए-दिलदार तक गुज़ार
फ़रियाद-ओ-नाला करते हैं दिन रात वो मगर
मुमकिन नहीं कि कानों तक उस के पहुँच सके
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