बादबान
समुंदरों की नील-गूँ फ़ज़ा-ए-आब में भी रक़्स कर चुका हूँ बार-हा
मिरे लिए कोई उफ़ुक़ ये आसमाँ की वुसअतें भी अजनबी नहीं
मैं इन में सैकड़ों, हज़ारों ज़िंदगी के गीत आतिशीं धुनों में गा चुका
किसी को ढूँड ही रहा था, कौन जाने किस को ढूँढता था मैं
हज़ार बार ढूँढता रहा हूँ जिस को मौसमों के मद्द-ओ-जज़्र में मगर न पा सका
सितारे डूबने लगे और आँधियों की शिद्दतें हबाब बन के रह गईं
किसी को ढूँड ही रहा था मैं सहर की नर्म नर्म शबनमीं फ़ज़ाओं में
कि आप आ गईं, और आ के छा गईं समुंदर और आसमाँ की बे-कराँ ख़लाओं में
हज़ारों दास्तानें बहर-ए-नीलगूँ की चश्म-ए-नाज़ में लिए हुए
हज़ारों महर-ओ-माह की तजल्लियों का जिस्म आईना बना हुआ
मैं सोच ही रहा था, लहरें नब्ज़-ए-काएनात तो नहीं
कि एक लहर उट्ठी जिस की बरहमी के सामने मिरी तमाम क़ुव्वतें हबाब बन के रह गईं
कनार-ए-आब एक पल मैं देखते ही देखते मैं फिर पड़ा हुआ था रेत पर
मिरे बदन की रेत का हर एक ज़र्रा एक आईना था
और जाने कितने आफ़्ताब जगमगा रहे थे मेरे जिस्म पर
हज़ार मैं गुनाहगार हूँ तो क्या
ये मेरा जिस्म ख़ाक-ओ-ख़ूँ का इम्तिज़ाज ही सही
हज़ार मैं गुनाह-गार हूँ तो क्या
ये ज़लज़ले ये आँधियाँ ये बर्क़ ओ आतिश ओ शरर मिरे मिज़ाज ही सही
मगर सुकून पा के जब भी शादमाँ हुआ हूँ
गुनगुना उठा हूँ मुस्कुरा दिया हूँ
मिरे इस आहनी महल के आस्ताँ पे आसमाँ की जन्नतें भी सज्दा-रेज़ हो गईं
अगर नहीं हैं नारियल के साए सतह-ए-आब पर तो क्या हुआ
मगर बहुत ही दूर आ चुके हैं साहिलों को छोड़ कर
उठाओ लंगर और बादबान खोल दो
हवाएँ तेज़ हैं तो क्या ये लहरें शोला-रेज़ हैं तो क्या
उठाओ लंगर और बादबान खोल दो
मैं जानता हूँ ख़ूब जानता हूँ एक काएनात और भी है
मावरा-ए-काएनात
बरस रहा है अमृत आसमाँ से चाँदनी के रूप में
ज़मीं ज़मीं की काएनात के लिए नुमू है धूप में
मगर ये बर्ग ये समर ये गुल्सिताँ बग़ैर रंग के तो कुछ नहीं
सितारे डूबने लगे तो क्या
ये लहरें शोला-रेज़ हैं तो क्या
उठो और उठ के कश्तियों के बादबान खोल दो
ये कौन कहता है कि लहरों का ख़ुदा कोई नहीं
ये लहरें ख़ूब जानती हैं साहिलों का रास्ता
- पुस्तक : Nai Nazm ka safar (पृष्ठ 143)
- रचनाकार : Khalilur Rahman Azmi
- प्रकाशन : NCPUL, New Delhi (2011)
- संस्करण : 2011
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.