बारिश
आ गई ठंडी हवा बरसात की
छा गई काली घटा बरसात की
अब कहाँ सूरज की गर्मी का वो जोश
छुप गया बादल का सुनते ही ख़रोश
दल के दल बादल उमँड कर आ गए
और सारे आसमाँ पर छा गए
अब्र के साए में है सारी ज़मीं
दूसरे साए की अब हाजत नहीं
हो गए ऐसे में सब जाँ-दार ख़ुश
लहलहाता सब्ज़ा ख़ुश अश्जार ख़ुश
सुन के बारिश की मसर्रत का पयाम
झूमते मस्ती में हैं पौदे तमाम
सब परिंदे चहचहाते फिरते हैं
है ख़ुशी इतनी कि गाते फिरते हैं
ऐ लो वो गरजा वो आईं बूंदियाँ
दीद के क़ाबिल है ये प्यारा समाँ
ख़ूबसूरत किस क़दर है ये फुवार
मोतियों के हार में क़तरों के तार
मेंह बरसने की जो आती है सदा
इस से हो जाता है पैदा गीत सा
लो वो छींटे ज़ोर से आने लगे
पानी पर नाले भी बरसाने लगे
वो गरज बादल की वो बारिश का ज़ोर
शहर की गलियों में वो बच्चों का शोर
बे-तहाशा दौड़ते फिरते हैं ये
उठ खड़े होते हैं जब गिरते हैं ये
नाव काग़ज़ की बनाता है कोई
गीत सावन के सुनाता है कोई
जब फिसल जाता है कोई राहगीर
पीटते हैं तालियाँ बन कर शरीर
वो गली कूचों से पानी बह चला
ये कहाँ पहुँचेगा बतलाओ भला
ये ठहर सकता नहीं है शहर में
शहर से जा कर गिरेगा नहर में
जा गिरेगी नहर दरिया में कहीं
बस्तियों से दूर सहरा में कहीं
साथ ये सरमाया सब दरिया लिए
जाएगा रस्ता समुंदर का लिए
तय सफ़र करता हुआ लैल-ओ-नहार
बहर में मिल जाएगा अंजाम-ए-कार
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