न इज़्तिराब-ए-ग़ज़नवी न मशरब-ए-अयाज़ है
न ख़ून में हरारतें न सोज़ है न साज़ है
न ज़ौक़-ए-जाम-ओ-मय-कदा न बुत-कदे की आरज़ू
न तौफ़ कू-ए-यार का न हसरतें न जुस्तुजू
न ज़ौक़-ए-तेग़-ए-नाज़ है न शौक़-ए-नावक-ए-नज़र
न नाला-ए-हज़ीं-रसा न आह-ए-सर्द में असर
न हम-नशीं न वलवला कि लौ कहीं लगाएँ हम
न हौसला कि सख़्तियाँ फ़िराक़ की उठाएँ हम
न साज़-ए-इश्क़ ग़म-रुबा न कैफ़-ज़ा है जाम-ए-ग़म
न इज़्तिराब-ए-हिज्र है न इंतिज़ार-ए-शाम-ए-ग़म
न सरख़ुशी न आक़िली न आशिक़ी न बंदगी
न नग़्मा-ए-तरब-फ़िज़ा न ग़म-तराज़-ए-ज़िंदगी
मसर्रतें न राहतें मोहब्बतें न लज़्ज़तें
बढ़ी हुई कुदूरतें बढ़ी हुई अदावतें
न दर्द-मंद इश्क़ हैं न चारा-साज़-ए-दर्द हैं
उठे तो क्या रहे तो क्या कि रहगुज़र की गर्द हैं
न शोरिशें न काविशें न जोश है न वलवला
बुझी हुई तबीअ'तें बुझा हुआ सा हौसला
अगर यही है ज़िंदगी अगर यही शबाब है
तो मैं कहूँगा दोस्तो ये मुस्तक़िल अज़ाब है