चाँद का हुस्न
मैं ने माना कि फ़क़त ढेर चटानों का है चाँद
उस के अंदर गुल-ओ-नसरीं का नज़ारा न सही
चाँद के हुस्न में वाक़े' न हुई कोई कमी
उस के अंदर किसी लैला का इशारा न सही
ख़ार-ओ-मैदाँ हैं कहीं और कहीं संग-ओ-रेग
चाँद के गिर्द हवा है न है उस में पानी
चाँद की दिलबरी इन बातों से कुछ कम न हुई
चाँद इस वक़्त भी रानाई में है ला-सानी
मा'रका सर किया अमरीकी ख़ला-बाज़ों ने
इस हक़ीक़त से तो इंकार नहीं है मुझ को
चाँद के हुस्न का उन लोगों ने पर्दा किया चाक
इस ग़लत बात का इक़रार नहीं है मुझ को
चाँद के दश्त में इंसान ने की है तहक़ीक़
खोला है चाँद पे तहरीक-ओ-अमल का नया बाब
ख़ाक-ए-महताब में इंसाँ को नज़र आई नमी
कम हुआ किस तरह इन बातों से हुस्न-ए-महताब
बात ये सच है कि तारीख़ में बार-ए-अव्वल
चाँद की सतह पे इंसाँ ने क़दम रक्खा है
चाँद की बज़्म में इंसाँ ने किया ख़ुर्द-ओ-नोश
इस ने ले जा के वहाँ अपना अलम रक्खा है
लेकिन इस फ़त्ह से कुछ कम न हुआ चाँद का हुस्न
चर्ख़ पे चाँद की तुरकाना रविश है अब भी
चाँदनी रात उसी तरह है फ़रहत-अंगेज़
चाँदनी रात में पहली सी कशिश है अब भी
ये तो मालूम था पहले ही से हम लोगों को
मह-ए-कामिल की ज़िया का है कोई और कफ़ील
इस हक़ीक़त से हम आगाह बहुत पहले थे
चाँद की रौशनी सूरज ही का है अक्स-ए-जमील
फिर भी हम चाँद को कहते ही रहे पैकर-ए-नूर
उस की रानाई पे हर वक़्त रहे हम शैदा
की अता उस ने तख़य्युल को रू-पहली परवाज़
उस के इक नाम से लाखों हुए मज़मूँ पैदा
अब भी हम चाँद में करते हैं तबस्सुम महसूस
आरिज़-ए-माह में है फूल का रू-ए-ख़ंदाँ
अब भी महताब के लौ देते हुए चेहरे पर
किसी महबूब के रुख़्सार का होता है गुमाँ
लाखों चीज़ें हैं हसीं महफ़िल-ए-दुनिया में मगर
ऐसी शय मिल नहीं सकती है कहीं से हम को
चाँद बद-शक्ल है देखें जो ख़ला में जा कर
चाँद लगता है हसीं अब भी ज़मीं से हम को
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