दूसरा आसमान
पहले दिन बादल ज़ख़्मी हो गए
दूसरे दिन सितारे
और तीसरे दिन
बहुत सी गोलियाँ नीले आसमान को जा लगीं
और वो सियाह हो गया
आँसुओं की तरह कोई चीज़
ज़मीन पर गिरने लगी
कभी ख़ामोशी के साथ बहुत सारी बूँदें
और कभी सड़क पर शोर मचाता हुआ
मोसलाधार पानी
ज़ख़्मी आसमान
बुरी तरह रो रहा था
उस ने अपना चेहरा
बहुत सारे बादलों से ढका हुआ था
हम उसे हँसाने की कोशिश में बाहर निकलते
तो बारिश और तेज़ हो जाती
सियाह और मटियाली कीचड़ अपने जूतों में लगाए
हम फिर घर में आ जाते
आसमान के आँसू
क़ालीन में जज़्ब हो जाते
या हमारे कपड़ों के साथ सारे घर में फैल जाते
पक्के फ़र्श पर हमारे कीचड़ भरे पैरों के निशान
आसमान के ज़ख़्मों की तरह
कभी हल्के और कभी गहरे हो जाते
आसमान की तरफ़ जाने वाली दुआएँ
तेज़ बारिश के साथ वापस आ कर
गीली मिट्टी में ग़ाएब हो जातीं
छोटी छोटी छतरियाँ
आसमान की या हमारी क़िस्मत के लिए ना-काफ़ी थीं
ऐसे मौसम में थोड़ी देर के लिए
अगर वो फ़ाइरिंग बंद कर देते
तो शायद हमारी तरह
आसमान भी अच्छा हो जाता
पहले से ज़ियादा नीला और चमकदार
- पुस्तक : saarii nazmen (पृष्ठ 468)
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