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एक आख़िरी बोसा

ख़ुर्शीद अकरम

एक आख़िरी बोसा

ख़ुर्शीद अकरम

MORE BYख़ुर्शीद अकरम

    रिश्तों की बुकारत बचाने में

    मोहब्बत काम गई तो क्या

    मलूल हो

    मोहब्बत और दुनिया के दरमियान

    ये रिश्ता काँच और पत्थर का

    यूँ ही बना रहेगा

    आईन तो यही ठहरा है कि

    फ़त्ह का परचम दुनिया ही लहराएगी

    और मोहब्बत

    ज़मीन की तह में छुप कर इंतिज़ार करेगी

    दुनिया के फ़ासिल बन जाने का

    तू पशीमान हो

    अपने पैमाँ को मानिंद-ए-हबाब टूटता देख कर

    आओ मोहब्बत के ख़ुदा का शुक्रिया अदा करें

    और एक आख़िरी बोसे को महफ़ूज़ कर के

    अपने अपने केचुओं की भीड़ में खो जाएँ

    यूँ कि ढूँडें तो

    अपना भी पता पाएँ

    RECITATIONS

    ख़ुर्शीद अकरम

    ख़ुर्शीद अकरम,

    ख़ुर्शीद अकरम

    एक आख़िरी बोसा ख़ुर्शीद अकरम

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