एक अचानक मौत का नौहा
ब-ज़ाहिर ये लगता है
उस मल्गजी सुब्ह को सब सहारों ने जैसे
अचानक तिरा साथ छोड़ा
सहर ने ज़मीं पर क़दम जब रखा
तो अचानक ज़मीं बेवफ़ा हो गई
उभरता हुआ आफ़्ताब
एक ही ना-गहाँ लग़्ज़िश-ए-पा से यूँ लड़खड़ाया
कि मग़रिब के पाताल में मुँह के बल जा समाया
अचानक फ़रिश्ते कफ़न साएबाँ की तरह तान कर
आसमानों से उतरे
गुलों की महक की जगह दफ़अतन बू-ए-काफ़ूर की सर्द-मेहरी ने ले ली
शजर के बदन से नई कोंपलों की बजाए ख़िज़ाँ फूट निकली
ब-ज़ाहिर ये लगता है
लेकिन भला हादसा एक-दम कब हुआ है
बहुत दिन से इस सर-ब-महर आतिशीं राज़ का गुंग फ़ीता
ख़मोशी से जलता चला जा रहा था
फ़ना के गरजते हुए आबशारों के ऊपर तना
रस्सियों का ये पुल
एक मुद्दत से गलता जा रहा था
- पुस्तक : sarabon ke sadaf (पृष्ठ 138)
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