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एक और मशवरा

अमजद इस्लाम अमजद

एक और मशवरा

अमजद इस्लाम अमजद

MORE BYअमजद इस्लाम अमजद

    बस्तियाँ हों कैसी भी पस्तियाँ हों जैसी भी

    हर तरह की ज़ुल्मत को रौशनी कहा जाए

    ख़ाक डालें मंज़िल पर भूल जाएँ साहिल को

    रुख़ जिधर हो पानी का उस तरफ़ बहा जाए

    मुल्क बेच डालें या आबरू रखें गिरवी

    जैसा हुक्म-ए-हाकिम हो उस तरह किया जाए

    शोर में सदाओं के अजनबी हवाओं के

    कौन सुनने वाला है? किस से अब कहा जाए!

    गुफ़्तुगू पे पहरे हैं हर तरफ़ कटहरे हैं

    रास्ते मुअय्यन हैं हर क़दम पे लिक्खा है

    किस जगह पे रुकना है! किस तरफ़ चला जाए

    दिल की बात कहने का इक यही तरीक़ा है

    छुप के सारी दुनिया से अब घरों के कोनों में

    आप ही सुना जाए आप ही कहा जाए

    स्रोत :
    • पुस्तक : Nazdik (पृष्ठ 167)
    • रचनाकार : Amjad Islam Amjad
    • प्रकाशन : Sang-e-Meel Publications, Lahore (2014)
    • संस्करण : 2014

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