फ़ज़ा ये बूढ़ी लगती है
पुराना लगता है मकाँ
समुंदरों के पानियों से नील अब उतर चुका
हवा के झोंके छूते हैं तो खुरदुरे से लगते हैं
बुझे हुए बहुत से टुकड़े आफ़्ताब के
जो गिरते हैं ज़मीन की तरफ़ तो ऐसा लगता है
कि दाँत गिरने लग गए हैं बुड्ढे आसमान के
फ़ज़ा ये बूढ़ी लगती है
पुराना लगता है मकाँ
- पुस्तक : Quarterly TASTEER Lahore (पृष्ठ 357)
- रचनाकार : Naseer Ahmed Nasir
- प्रकाशन : H.No.-21, Street No. 2, Phase II, Bahriya Town, Rawalpindi (Volume:15, Issue No. 1, 2, Jan To June.2011)
- संस्करण : Volume:15, Issue No. 1, 2, Jan To June.2011Quarterly TASTEER Lahore
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.