इल्तिमास
अपने आँचल पे सितारों से मिरा नाम न लिख
मैं तिरा ख़्वाब हूँ पलकों में सजा ले मुझ को
मेरी फ़ितरत है मोहब्बत की मचलती हुई लहर
अपने सीने के समुंदर में छुपा ले मुझ को
ज़िंदगी चाँदनी रातों का हसीं रूप लिए
संग-ए-मरमर के जज़ीरों में उतर आई है
इक तिरे दस्त-ए-हिनाई को छुआ है जब भी
सात रंगों की फ़ज़ा ज़ेहन में लहराई है
तेरे हँसते हुए होंटों का पिघलता हुआ लम्स
गुनगुनाता है मिरी रूह की तन्हाई में
किसी शीशे किसी साग़र किसी सहबा में कहाँ
वो जो मस्ती है तिरे जिस्म की अंगड़ाई में
अपनी अबरेशमीं ज़ुल्फ़ों के घनेरे साए
मेरी नींदों के शबिस्तानों में लहराने दे
मुझ को हँसते हुए ख़्वाबों का मुक़द्दर बन कर
अपने हाथों की लकीरों में समा जाने दे
- पुस्तक : Khushbu Ka Khwab (पृष्ठ 54)
- रचनाकार : Prem Warbartani
- प्रकाशन : Miss V. D. Kakkad (1976)
- संस्करण : 1976
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