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इंशा

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    रोचक तथ्य

    (For the 2-year old Insha)

    कभी खुल के जब खिलखिलाती है इंशा

    फ़ज़ाओं में सरगम बजाती है इंशा

    हर इक लब पे तितली बिठाती है इंशा

    झड़ी क़हक़हों की लगाती है इंशा

    मसर्रत की दुनिया बसाती है इंशा

    मिरे घर को जन्नत बनाती है इंशा

    कभी माइशा को हँसाती है इंशा

    कभी माइशा को रुलाती है इंशा

    कभी पास उस को बुलाती है इंशा

    कभी दूर उस को भगाती है इंशा

    बहन से तो कसरत कराती है इंशा

    मिरे घर को जन्नत बनाती है इंशा

    कहानी सुनाती है नानी को इंशा

    अदाएँ दिखाती है नानी को इंशा

    मसर्रत दिलाती है नानी को इंशा

    दिवाना बनाती है नानी को इंशा

    जवानी बुढ़ापे में लाती है इंशा

    मिरे घर को जन्नत बनाती है इंशा

    कभी ढूँड लाती है नानू का चश्मा

    कभी फेंक आती है नानू का चश्मा

    कभी ख़ुद लगाती है नानू का चश्मा

    कहीं से भी पाती है नानू का चश्मा

    तो आवाज़ फ़ौरन लगाती है इंशा

    मिरे घर को जन्नत बनाती है इंशा

    मोबाइल पर इस तरह उँगली घुमाए

    कि जैसे कोई शख़्स जादू चलाए

    मोबाइल के पर्दे पे हैरत उगाए

    हज़ारों तरह के करिश्मे दिखाए

    दिखा कर करिश्मे रिझाती है इंशा

    मिरे घर को जन्नत बनाती है इंशा

    कभी कोई खाने का मंज़र दिखाए

    कभी अपनी उँगली से पिज़्ज़ा बनाए

    कभी तो मज़ेदार मुर्ग़ा पकाए

    सलादों से खाने की थाली सजाए

    कभी चाय काफ़ी पिलाती है इंशा

    मिरे घर को जन्नत बनाती है इंशा

    फ़लक पास जा कर कभी मुस्कुराती

    कभी छेड़ती तो कभी गुदगुदाती

    महक को कभी अपना कर्तब दिखाती

    कभी बेबी नन्ना को पोयम सुनाती

    हर इक आदमी को लुभाती है इंशा

    मिरे घर को जन्नत बनाती है इंशा

    मलाहत में इस की चमक है ग़ज़ब की

    सरापे में इस के लचक है ग़ज़ब की

    सदाओं में इस की खनक है ग़ज़ब की

    अदाओं में इस की चहक है ग़ज़ब की

    ग़ज़ब का नज़ारा दिखाती है इंशा

    मिरे घर को जन्नत बनाती है इंशा

    चहेती किसी की किसी की दुलारी

    किसी को लगे सारे दुनिया से न्यारी

    किसी को हो महसूस फूलों से भारी

    सनी को तो है जान-ओ-दिल से भी प्यारी

    बहुत आमना को भी भाती है इंशा

    मिरे घर को जन्नत बनाती है इंशा

    मोबाइल पे अब्बा को देखे तो डोले

    चहक कर लपक कर ज़बाँ अपनी खोले

    मसर्रत से लबरेज़ अल्फ़ाज़ बोले

    शहद कान में अपने अब्बा के घोले

    क़तर तक मोहब्बत लुटाती है इंशा

    मिरे घर को जन्नत बनाती है इंशा

    मोबाइल पे फ़रहान ख़ाँ की ज़बानी

    हर इक रात सुनती है वो इक कहानी

    कहानी में आती है जब कोई रानी

    तो बच्ची से बन जाती है वो सियानी

    बहुत दाद अब्बा से पाती है इंशा

    मिरे घर को जन्नत बनाती है इंशा

    कभी अपने घोड़े से भौं भौं कराए

    कभी शेर चीते को बकरी बनाए

    कभी सर पे बिल्ली के हाथी बिठाए

    कभी डॉरीमॉन को भी पट्टी पढ़ाए

    अनोखे तमाशे दिखाती है इंशा

    मिरे घर को जन्नत बनाती है इंशा

    मगर खाने पीने से जी है चुराती

    ज़रा देर में मुँह में लुक़्मा गिराती

    बहुत अपनी अम्माँ से कसरत कराती

    कभी नाच तिगड़ी का भी वो नचाती

    खिलाने में पागल बनाती है इंशा

    मिरे घर को जन्नत बनाती है इंशा

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