जमुना
धीमी धीमी बहने वाली एक नहर-ए-दिल-नशीं
आब-ए-जू छोटी सी इक नाज़ुक ख़िराम-ओ-नाज़नीं
तिश्नगी-ए-शौक़ गंगा में बुझाने के लिए
जा रही है अपनी हस्ती को मिटाने के लिए
ये वो जमुना है कि दिलकश जिस का है अंदाज़-ए-हुस्न
देखते हैं आह आशिक़ जिस का ख़्वाब-ए-नाज़-ए-हुस्न
ये वो जमुना है कि गाती हैं सुख़नवर जिस के गीत
मुत्रिबान-ए-ख़ुश-गुलू की हैं ज़बाँ पर जिस के गीत
ये वो जमुना है जहाँ ले ले के जल्वत के मज़े
लूटे हैं उश्शाक़ ने बरसों मोहब्बत के मज़े
ये वो जमुना है कि राधा सी हसीं ने मुद्दतों
ब्रिज की इक पाक-दामन नाज़नीं ने मुद्दतों
बंसी वाले की जुदाई में उड़ा कर सर पे ख़ाक
अपने अश्कों से किया है दामन-ए-साहिल को पाक
ये वो जमुना है जहाँ इक बानु-ए-पर्दा-नशीं
आगरा में महव-ए-आसाइश है जो ज़ेर-ए-ज़मीं
रुख़ से आहिस्ता उलट कर चादर-ए-आब-ए-रवाँ
देखती थी मुस्कुरा कर मंज़र-ए-आब-ए-रवाँ
आह ऐ नहर-ए-लताफ़त आह ऐ बहर-ए-जमाल
दिल में है पहलू-नशीं अब तक तिरा नक़्श-ए-ख़याल
गरचे तुझ में अब नहीं वो जल्वा-ए-शान-ए-कुहन
वो हसीं तो है कि ऐ शम-ए-शबिस्तान-ए-कुहन
हुस्न-ए-रफ़्ता में है तेरे अब भी इक दिलकश अदा
तेरे कुमलाए हुए फूलों में है बू-ए-वफ़ा
तू है दरिया-ए-मुक़द्दस तू कि है इस्याँ से पाक
तेरा दामन है अभी आलाइश-ए-इंसाँ से पाक
तेरी शौकत के हैं शाहिद ऐ वफ़ादार-ए-कुहन
तेरे बुर्जों और तिरे क़िलओं' के आसार-ए-कुहन
तेरे साहिल से टपकती अब भी है शान-ए-बुलंद
आसमाँ-फ़र्सा हैं अब भी तेरे ऐवान-ए-बुलंद
तेरे फ़र्सूदा निशाँ हैं नक़्श-ए-नाज़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़
तेरी मौजों में निहाँ है आह-ए-राज़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़
आह ओ रंगीं-अदा ओ दिल्ली वाली नाज़नीं
ओ दो-आलम के हसीनों से निराली नाज़नीं
याद-ए-अय्यामे कि दिलकश थे तिरे नक़्श-ओ-निगार
दिन मुरादों के थे और जोश-ए-जवानी का उभार
चढ़ के जब मीनार पर इक ला'बत-ए-नाज़-आफ़रीं
देखती थी तेरी मौजों की अदा-ए-दिल-नशीं
वो कफ़-ए-सैलाब वो शोर-ए-तलातुम हाए हाए
तेरी मौजों का वो अंदाज़-ए-तबस्सुम हाए हाए
धीमी धीमी वो तिरी रफ़्तार बल खाई हुई
वो नज़र झेंपती हुई चितवन वो शर्माई हुई
वो सुरीली नग़्मा-ए-जोश-ए-तलातुम की सदा
आह वो दिलकश तिरे साज़-ए-तरन्नुम की सदा
ब्रिज की ओ पाक-दामन ओ मुक़द्दस नाज़नीं
नक़्श है दिल पर तिरी इक इक अदा-ए-दिल-नशीं
अब कहाँ जमुना तिरी मौजों की मस्ताना वो चाल
अब कहाँ पानी के झरने और वो लुत्फ़-ए-बर्शगाल
अब कहाँ छोटा सा वो राधा का कुंज-ए-ख़ुश-गवार
अब कहाँ वो आह मथुरा तेरे फूलों की बहार
अब कहाँ वो बंसी वाले की अदा-ए-जाँ-नवाज़
अब कहाँ वो आह मुरली की सदा-ए-जाँ-नवाज़
अब कहाँ वो ख़ल्वत-ए-राज़-ओ-नियाज़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़
बे-सदा ज़ेर-ए-ज़मीं हैं आह साज़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़
ओ तलव्वुन-केश ओ काफ़िर-अदा और दूँ-शिआ'र
तू ने बदले रंग लाखों आह वज़-ए-रोज़गार
ख़ाक उठ कर आह सर पर दामन-ए-साहिल उड़ा
टुकड़े टुकड़े कर जिगर को पारा-हा-ए-दिल उड़ा
सोज़िश-ए-ग़म से पिघल जा आह ऐ रेग-ए-रवाँ
ज़र्रे ज़र्रे में तेरे तस्वीर-ए-इबरत है निहाँ
अब कहाँ वो कुंज-ए-दिल-कश अब कहाँ राधा का ऐश
है ब-रंग-ए-ख़ंदा-ए-गुल बे-बक़ा दुनिया का ऐश
ऐ ख़ुशा क़िस्मत तिरी जमुना ख़ुशा तेरे नसीब
वाह-वा तेरे मुक़द्दर वाह-वा तेरे नसीब
तू ने देखी है बहुत दिन मुरली वाले की अदा
दोनों-आलम के हसीनों से निराले की अदा
और सुनी बंसी की है बरसों सदा-ए-दिल-नवाज़
दास्तान-ए-दर्द-ए-दिल अफ़साना-ए-सोज़-ओ-गुदाज़
महशरिस्तान-ए-अलम कम्बख़्त है कर दिल को चाक
चीर पहलू को कि निकलें नाला-हा-ए-दर्द-नाक
ता-कुजा ये सर-गुज़श्त-ए-दास्तान-ए-दर्द-ओ-ग़म
छेड़ ऐ जमुना कोई ताज़ा बयान-ए-दर्द-ओ-ग़म
हो न लेकिन आह तेरा शोर-ए-मातम दिल-ख़राश
तेरे नालों की सदा या'नी हो कम कम दिल-ख़राश
ऐ लब-ए-साहिल सुना सीतों की इस्मत का बयाँ
पर्दा-ए-अफ़साना में सोज़-ए-मोहब्बत का बयाँ
तेरे पहलू में है ये किस हूर-वश की यादगार
जिस से रातों को उठा करते हैं आहों के शरार
आह फ़र्सूदा-निशान-ए-इस्मत-ए-जाँ-बाज़ तू
किस परी-पैकर का है नक़्श-ए-वफ़ा-ए-नाज़ तू
है तिरी ता'मीर में मुज़्मर वही शान-ए-वफ़ा
तेरी हर ख़िश्त-ए-कुहन है जौहर-ए-कान-ए-वफ़ा
ग़ुल न कर आहिस्ता आहिस्ता हो ऐ जमुना रवाँ
ताज-ए-इस्मत का यहाँ हर इक दुर-ए-यकता निहाँ
ऐ ज़हे शौकत तिरी जमुना ज़हे एज़ाज़-ओ-शॉं
तुझ पे लहराया किया इस्लाम का सदियों निशाँ
हाए वो तुर्कों के दस्ते और संगीनों की शान
तिरछे-बाँके वो जवाँ वो चार आईनों की शान
बे-सदा ज़ेर-ए-ज़मीं है बज़्म-ए-शाहान-ए-ग़यूर
आह जमुना तुझ में लेकिन है वही शान-ए-ग़ुरूर
आह ओ शिकवा-तराज़-ए-दस्त बेदाद-ए-अजल
रो न ख़ून-ए-आरज़ू ओ महव-ए-फ़रियाद-ए-अजल
आह इस दार-ए-फ़ना में है बक़ा किस के लिए
छोड़ने वाला है शाहीन-ए-क़ज़ा किस के लिए
आह उस ख़्वाब-ए-शबाना का है मुझ को इंतिज़ार
उस सुरूर-ए-आशिक़ाना का है मुझ को इंतिज़ार
तेरी इक इक मौज थी जब आह तूफ़ाँ-कोश-ए-शौक़
हल्क़ा-ए-गिर्दाब था जब हाला-ए-आग़ोश-ए-शौक़
जब किसी के गेसू-ए-पुर-ख़म की सौदाई थी तू
और लब-ए-साहिल पे रौज़ा की तमाशाई थी तू
आह जमुना तुझ को दौर-ए-पास्तानी की क़सम
शौकत-ए-देरीना-ए-साहब-क़िरानी की क़सम
क्या न होंगे तुझ को वो दिलकश मनाज़िर फिर नसीब
अज़्मत-ए-इस्लाम के अगले मज़ाहिर फिर नसीब
हो के मुज़्तर आह जोश-ए-इज़्तिराब-ए-दिल से क्या
यूँही टकराया करेगी सर को तू साहिल से क्या
कौन ये पर्दा-नशीं है तेरे दामन में निहाँ
किस का चेहरा है नक़ाब-ए-ज़ुल्फ़-ए-पुर-फ़न में निहाँ
तेरी मौजों में है ये किस की सदा-ए-दिल-फ़रेब
गा रही है कौन ये ग़ारतगर-ए-सब्र-ओ-शकेब
ख़ाना-ए-दिल में है तेरे कौन महव-ए-रक़्स-ए-नाज़
आ रही है किस की छागल की सदा-ए-जाँ-नवाज़
वो समन-अंदाम है ये शाहिद-ए-पर्दा-नशीं
जिस के फूलों में है अब तक बू-ए-फ़िर्दोसे-ए-बरीं
हूरें आ कर ख़ुल्द से तौफ़-ए-मज़ार-ए-पाक को
झाड़ती पलकों से हैं गर्द-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक को
आह ऐ नक़्श-ओ-निगार-ए-शौकत-ए-अह्द-ए-कुहन
आह ऐ आईना-दार-ए-शौकत-ए-अह्द-ए-कुहन
हम ने नाना तुझ में अब वो शान-ए-बरनाई नहीं
वो ग़ुरूर-ए-हुस्न वो तम्कीं वो रा'नाई नहीं
हम ने माना तेरे चेहरे की ज़िया जाती रही
तेरी मौजों की वो मस्ताना अदा जाती रही
मुँह पे गुमनामी का आँचल ले न ऐ पर्दा-नशीं
यूँ ही सरगर्म-ए-ख़िराम-ए-नाज़ रह ऐ नाज़नीं
सर को टकराया करे साहिल से सैल-ए-रोज़गार
तेरी शोहरत के निशाँ सदियों रहेंगे यादगार
- Tasvir-e-Manazil (Jild Avval)
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