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काएँ काएँ कव्वा टें टें मिठ्ठू

अहमद हातिब सिद्दीक़ी

काएँ काएँ कव्वा टें टें मिठ्ठू

अहमद हातिब सिद्दीक़ी

MORE BYअहमद हातिब सिद्दीक़ी

    एक टहनी पे बैठे थे मिठ्ठू मियाँ

    गया एक कव्वा भी उड़ कर वहाँ

    आइए आइए शौक़ फ़रमाइए

    मीठा अमरूद है आप भी खाइए

    बोला कव्वा कि ख़ामोश टें टें कर

    वर्ना मैं फोड़ दूँगा अभी तेरा सर

    बेवक़ूफ़ों से मैं बात करता नहीं

    अपने दर्जे से नीचे उतरता नहीं

    कौन सा तू उक़ाब और शाहीन है

    मुँह लगाना तुझे मेरी तौहीन है

    बोलीं कव्वे ने जब ऐसी बड़ बोलियाँ

    तो ग़ुस्से में बोले ये मिठ्ठू मियाँ

    तू ने क्या तीर मारे हैं मैं भी सुनूँ

    तेरी चालाकियों पर ज़रा सर धुनों

    बोला कव्वा कि रट्टू तोते ये सुन

    मेरी दानिश का हर शख़्स गाता है गुन

    कर दूँ रौशन अभी तेरे चौदह तबक़

    याद है बच्चे बच्चे को मेरा सबक़

    एक दिन जब बहुत सख़्त प्यासा था मैं

    ये समझ ले कि बस अध-मरा सा था मैं

    एक मटके में पानी की देखी झलक

    चोंच डाली तो पहुँची पानी तलक

    ज़ेहन ने काम करना शुरूअ' कर दिया

    मटका कंकर से भरना शुरूअ' कर दिया

    उन की तादाद मटके में जब बढ़ गई

    सत्ह पानी की ऊपर तलक चढ़ गई

    मैं ने पानी गटा-गट गटा-गट पिया

    फिर फुदकते हुए काएँ काएँ किया

    देख ले किस क़दर तेज़ तर्रार हूँ

    कितना चालाक हूँ कितना हुश्यार हूँ

    बोले मिठ्ठू मियाँ मार कर क़हक़हा

    बे-वक़ूफ़ी की बस हो गई इंतिहा

    जाने मटके में पानी था कब से पड़ा

    फिर ढकना भी नहीं था खुला था घड़ा

    गंदे कंकर भी भरता गया उस में तू

    पी गया ऐसे पानी को फिर आख़ थू

    ऐसे पानी से लगती हैं बीमारियाँ

    पेश आती हैं कितनी ही दुश्वारियाँ

    ख़ुद को कहता अक़्ल-मंद-ओ-दाना है तू

    लेकिन अफ़्सोस अहमक़ का नाना है तू

    तू अगर गंदी चीज़ें खाए पिए

    लोग पालें तुझे तू मज़े से जिए

    साफ़ होता तो घर घर बुलाते तुझे

    इस तरह मार कर क्यूँ भगाते तुझे

    कव्वा सुनते ही ये बात रोने लगा

    अपने पर आँसुओं से भिगोने लगा

    और कहने लगा बात सच है तिरी

    लोग करते हैं नफ़रत शक्ल से मिरी

    कव्वा रो रो के जब आह भरने लगा

    उस पे मिठ्ठू ने ये तर्स खा कर कहा

    छोड़ दे इस तकब्बुर बड़ाई को तू

    अपनी आदत बना ले सफ़ाई की तू

    गंदा पानी पी गंदी चीज़ें खा

    उन में होता है डेरा जरासीम का

    ये जरासीम बीमार कर देते हैं

    अच्छे ख़ासों को बे-कार कर देते हैं

    यूँ ब-ज़ाहिर था कव्वा बहुत काइयाँ

    उस को समझा के हर बात मिठ्ठू मियाँ

    उड़ गए अपने पर फड़फड़ाते हुए

    मिठ्ठू बेटे के नारे लगाते हुए

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