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काश समझदार न बनूँ

अतीया दाऊद

काश समझदार न बनूँ

अतीया दाऊद

MORE BYअतीया दाऊद

    रोचक तथ्य

    (I wish I didn't become wise. Wise women suffer.)

    तजरबा-कार ज़ेहन तो सब समझ जाता है

    ज़ेहन में सोचों को बंद कर के

    ताला डाल दूँ

    चालाक आँखें तो सब कुछ ताड़ लेती हैं

    इन पर ला-इल्मी के शीशे चढ़ा दूँ

    अपने हस्सास दिल को

    ज़रा ख़ातिर में लाऊँ

    माज़ी का तमाम मुशाहिदा और तजरबा

    जो दर्ज है ज़ेहन पर

    उसे मिटा डालूँ

    मेरी अक़्ल मेरे लिए अज़ाब बन गई है

    काश समझदार बनूँ

    सिसकी और क़हक़हा

    मैं अपने पाँव तले से जन्नत निकाल कर

    बड़ी ख़ुशी से तुम्हें सौंपने के लिए तय्यार हूँ

    मैं अपने पाँव में बंधी गृहस्ती की बेड़ियों को

    बस थोड़ा सा ढीला कर रही हूँ

    ज़ियादा दूर नहीं जाऊँगी

    एक क़हक़हा लगा कर एक सिसकी भर कर

    या एक नज़्म लिख कर लौट आऊँगी

    मैं आज़ाद औरत हूँ लेकिन

    अगर मेरे बच्चों के बालों में लीखें पड़ जाएँ

    उन की गर्दन पर पसीना मिली मिट्टी नज़र आए

    मेरे खानों में मसालहों की तरतीब गड़बड़ हो जाए

    बच्चों के होम-वर्क की कॉपी पर

    नॉट-डन लिखा हुआ जाए

    घर आए मेहमानों को ख़ुश-आमदीद कहते हुए

    एक कप चाय भी पिला सकूँ

    ऑफ़िस से लौटते हुए थके हुए शौहर से

    हाल-अहवाल भी पूछूँ

    तो मेरी साँसें घुट्टी हुई

    और क़हक़हा फटी फटी आँखें

    और नज़्म अधूरा ख़्वाब लगती है

    ख़ुदा ने नबुव्वत अता करते हुए इमाम बनाते हुए

    पूरी क़लंदरी अता करते हुए

    मुझ पर ए'तिबार नहीं किया था

    पूरी क़ौम को आ'ला नस्ल देने की ज़िम्मेदारी

    फ़क़त मेरी है

    इस आ'ली मंसब पर काम करते करते

    मैं थक भी तो सकती हूँ

    मेरी इत्तिफ़ाक़ी रुख़्सत मंज़ूर हो चुकी है

    मैं जा रही हूँ एक सिसकी भरने एक क़हक़हा लगाने

    और एक नज़्म लिखने के लिए

    छुट्टी अख़लाक़ी तौर पर मंज़ूर होने के बावजूद

    घर की हर चीज़ को मुझ से शिकायत

    क्यूँ है

    बच्चों के चेहरे पर ग़ुस्सा देख कर सोचती हूँ

    क़हक़हा अय्याशी और सिसकी या आस है

    और नज़्म पाँव में चुभा हुआ काँच का टुकड़ा है

    मेरी माँ कहती है

    तुम मुझ से अच्छी माँ नहीं हो

    तुम अजब हो घर शौहर और बच्चों के अलावा

    और भी कुछ चाहती हो

    मेरी बेटी मेरे हाथ से क़लम छीन कर

    कहती है फ़्रैंच-फ्राई बना कर दो

    मैं सोचती हूँ

    मेरी बेटी को भी जब

    एक क़हक़हे नज़्म या तस्वीर के लिए

    अपनी ज़िंदगी की तिजोरी से

    कुछ पल दरकार होंगे

    तो मैं उसे क्या मशवरा दूँगी

    क़हक़हा बचपन की बिछड़ी हुई सखी

    सिसकी हाथों से उड़ता हुआ पंछी

    और नज़्म गुनाह है

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