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किराए का मकान

क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद

किराए का मकान

क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद

MORE BYक़ाज़ी गुलाम मोहम्मद

    रोचक तथ्य

    (Note: Mention of a rented house would be incomplete without the mention of rats- Socrates)

    अजब शय है किराए का मकाँ भी

    मकाँ भी है ये ज़ालिम ला-मकाँ भी

    बड़ी उजलत में बनवाया गया है

    लई से छत को चिपकाया गया है

    है वाक़े' एक नाली के किनारे

    मयस्सर हैं मुझे क्या क्या नज़ारे

    नज़ीर उन की जहान-ए-ख़्वाब में है

    बहाराँ की शब-ए-महताब में है

    क्यों हो जिस्म मेरा रंज से चूर

    फ़क़त दो मील है ये शहर से दूर

    यहाँ आब-ओ-हवा का मस्ख़ चेहरा

    मिला हरगिज़ मौक़ा देखने का

    हम आपस में बहुत घुल-मिल गए हैं

    मुझे जेबों में चमगादड़ मिले हैं

    हैं बाम-ओ-दर पे ये ग़ारत-गर-ए-होश

    बहार-ए-बिस्तर-ओ-नौ-रोज़-ए-आग़ोश

    हमारी अब ये हालत हो गई है

    अँधेरों से मोहब्बत हो गई है

    यहाँ दिन को भी उल्लू बोलते हैं

    मिरे कानों में अमरस घोलते हैं

    जो दुनिया में हैं ये कीड़े-मकोड़े

    यहीं पल कर जवाँ होते हैं सारे

    ग़ुबार-आलूद यूँ मेरी जबीं है

    कहीं सीढ़ी कहीं कुछ भी नहीं है

    इसी सीढ़ी का है वो वाक़िआ' भी

    लुढ़क कर मर गई जो सास मेरी

    यहाँ चूहों के बिल इतने बड़े हैं

    कई साबित क़दम इन में गिरे हैं

    मुझे भी दूर की इक रोज़ सूझी

    किसी बिल को मैं खोदूँ जी में आई

    जो खोदा चश्म-ए-हैराँ ने ये देखा

    कि इक लीडर नुमा मोटा सा चूहा

    दबाए मुँह में इक ख़ासा बताशा

    मिरे मोज़े पहन कर जा रहा था

    वहीं इक चूहिया निकली कहीं से

    टपकता नाज़ था उस की जबीं से

    बसा था इत्र में हर रेशा उस का

    परे था अर्श से अंदेशा उस का

    बहुत बन-ठन के निकली थी बिचारी

    मियाँ चूहे ने फ़ौरन आँख मारी

    निगाह-ए-ग़ैर से शर्मा गई वो

    मियाँ चूहे से फिर टकरा गई वो

    मिले यूँ तालिब-ओ-मतलूब बाहम

    मजाज़ी इश्क़ का लहराया परचम

    ग़रज़ चूहे क़यामत ढा रहे हैं

    दर-ओ-दीवार पर मंडला रहे हैं

    मैं लाया था कहीं से एक बिल्ली

    पकड़ कर ले गए चूहे उसे भी

    स्रोत :

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