लाल-बहादुर-शास्त्री
शहीद-ए-क़ौम है कोई कोई शहीद-ए-वतन
बजा है तुझ को कहूँ मैं अगर शहीद-ए-वतन
तलाश-ए-अम्न में दिल्ली से ताशक़ंद गया
किसे ख़बर थी कि बाँधे हुआ था सर से कफ़न
पयाम-ए-अम्न दिया जारहान-ए-आलम को
गया सँवार के दुनिया की ज़िंदगी का चलन
किसे मजाल तिरी बात कोई काट सके
दलील तेरी मोअस्सिर तो पुर असर है सुख़न
मिठास बात में ऐसी कि राम अहल-ए-जहाँ
तिरी ज़बान थी क़ंद-ओ-नबात का मख़्ज़न
थी उस्तुवार मोहब्बत तेरी दोस्ती की असास
फ़ज़ा-ए-दहर में कोई न था तिरा दुश्मन
तू एक बंदा-ए-दरवेश था फ़क़ीर-मनश
चला गया जो ज़माने से झाड़ कर दामन
तिरे ख़ुलूस का क़ाइल है सद्र-ए-पाकिस्तताँ
कहाँ से सीखा था तू ने ये गुफ़्तुगू का फ़न
ज़माने-भर में हुआ हर तरफ़ तिरा मातम
मुहीत सारे जहाँ को हुए हैं रंज-ओ-मेहन
क़ुबूल हम को किए तू ने जिस क़दर पैमाँ
है तेरी रूह हमारे दिलों पे साया-फ़गन
है शर्क़-ओ-ग़र्ब में क़ाइल हर एक शख़्स तिरा
वज़ीफ़ा-ख़्वाँ-ओ-सना-गर तिरे शुमाल-ओ-दकन
- पुस्तक : Kulliyat-e-Arsh (पृष्ठ 380)
- रचनाकार : Arsh Malsiyani
- प्रकाशन : Ali Imran Chaudhary
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