मर्दाना कमज़ोरी
कोई अपना मरा
मेरा अपना मरा
मेरे आँगन में मातम की सफ़ बिछ गई
'औरतें बैन करती रहीं
बच्चे रोते रहे
मैं नहीं रो सका
मेरी पहली मोहब्बत जो सच्ची भी थी
और सच्ची भी थी
जब किसी ने उसे मुस्तरद कर दिया
मेरे सीने में यक-दम घुटन भर गई
साँस रुकने लगी
मैं नहीं रो सका
मुझ पे तोहमत लगाई किसी शख़्स ने
मेरे किरदार की लाश पर पाँव रख कर वो ऊँचा हुआ
मेरे पैरों के नीचे ज़मीं न रही
मैं नहीं रो सका
जैसे चरवाहा झोली में पत्ते दिखा कर
जो होते नहीं हैं बुलाता है अपनी तरफ़ बकरियाँ
मुझ को ऐसे किसी ने कहा आ मोहब्बत करें
उस के नज़दीक जा कर खुला
उस की झोली में चाहत के पत्ते नहीं
मेरी चीख़ें गले में रुकी रह गईं
मैं नहीं रो सका
मैं ने दफ़्तर में इक नौकरी ढूँढ़ ली
थोड़ा थोड़ा वहाँ रोज़ मरता रहा
काम करता रहा
मेरे कानों में लावा उंडेला गया
मेरे चेहरे की रौनक़ मिटाई गई
एक इक रग से ख़ूँ को निचोड़ा गया
मेरा सारा बदन ज़र्द होता रहा
दर्द होता रहा
मैं नहीं रो सका
मेरे काँधे पे 'औरत को रक्खा गया
पुश्त पर बाप का कुम्बा लादा गया
सर पे कव्वे भी भूके बिठाए गए
मेरे हाथों में तलवार दे दी गई
मुझ को मेरे ख़ुदा से डराया गया
जब कमर झुक गई
मैं घिसट कर चला
कुहनीयाँ छिल गईं
घुटने ज़ख़्मी हुए
ख़ून रिसता रहा
मैं नहीं रो सका
हादसों आफ़तों
बम धमाकों वबाओं में और जंग में
मेरे अपनों की लाशें उठाई गईं
मेरा दिल भर के आँखों तलक आ गया
मैं नहीं रो सका
रात दुनिया से छुप कर
मैं ऐसे जहाँ को ख़यालों में
लाता हूँ जिस में सभी दोस्त हों
इस तरह जिस तरह
पेड़ की एक टहनी कटे तो सभी टहनियाँ
ख़ुद पे महसूस करती हैं
आरे के दाँत
और सभी टहनियाँ अपना रस बाँटती हैं कटी शाख़ से
फिर कई टहनियाँ फूटती हैं उसी शाख़ से
एक ऐसे जहाँ को ख़यालों में लाता हूँ
जिस में सभी 'औरतें
शादमानी में खुल कर हँसें
दर्द में मर्द भी रो सकें
मैं बहुत रो के चिल्ला के दुनिया को बतला सकूँ
मेरे आ'साब में किस क़दर दर्द है
मैं तसव्वुर में लाता हूँ ऐसी जगह
जिस जगह मुझ को रोता हुआ देख कर
कोई ये न कहे
मर्द बन मर्द बन
सुब्ह होते ही मैं
अपनी सारी अज़िय्यत को
काँधों पे लादे हुए काम पर जाता हूँ
इस जहाँ के ख़यालों से बाहर निकल आता हूँ
क्यों कि ऐसा जहाँ
मेरी मर्दांगी को गवारा नहीं
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