मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
ये गाँव का मंज़र सन्नाटा और शाम की धुँदली तारीकी
इक शाम बहुत रंगीन मगर मुफ़्लिस की निगाहों में फीकी
धरती पे ये पानी सोने का आकाश पे नहरें चाँदी की
ये चाँद ये तारे ये दरिया मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
ये शहर की चलती सड़कों पर हर सम्त दुकानें नूरानी
बिजली में भी जलता हो जैसे इफ़्लास के पत्ते का पानी
चीज़ों की गिरानी में शामिल ग़ुर्बत के लहू की अर्ज़ानी
ये साज़ ये सामान-ए-इशरत मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
रातों के अँधेरे में जगमग जगमग ये फ़ज़ा मय-ख़्वानोंं की
मेज़ों पे नज़ारे मस्ती के बहकी हुई लय दीवानों की
बोतल की नवा-ए-कुलकुल में हल्की सी ख़ुनुक पैमानों की
ये शीशा ये साक़ी ये सहबा मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
सड़कों पे हसीनों का ताँता जादू का परा चलता फिरता
साड़ी की लपेटूँ से जिन की छिलके है जवानी की सहबा
मस्ती के क़दम सँभले सँभले आँचल का सिरा ढलका ढलका
ये हुस्न-ओ-जवानी रंग-ओ-अदा मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
आँखों पे मिरी एहसास है क्या सब्ज़ों पे अगर है बरनाई
क्यूँ पूछने जाऊँ क्यारी में फूलों का मिज़ाज-ए-रानाई
क्या काम है मुझ को गुलशन से कलियाँ हो खिली या मुरझाई
ये फूल ये शबनम शेर-ओ-फ़ज़ा मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
कॉलेज की ये ता'मीर-ए-ख़ंदाँ मम्नून ग़मों लाम नहीं
इस में किसी मुफ़्लिस के घर के ग़मगीन पिसर का नाम नहीं
सामान-ए-तिजारत है ये भी सामान-ए-मफ़ाद-ए-आम नहीं
ये इल्म ये हिकमत होश-रुबा मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
बे-जान हो जब नक़्श-ए-हस्ती तस्वीर-ए-तमन्ना क्या बोले
ताराज के ख़ूनी पंजे में तहज़ीब की मीना क्या बोले
चीलों के निजासत खाने में बेचारा पपीहा क्या बोले
ये नग़्मा ये शेर-ओ-साज़-ओ-नवा मेरे लिए क्या है कुछ भी नहीं
- पुस्तक : Nushoor Wahedi Veyaktitiva Chhaya Aur Shayri (पृष्ठ 127)
- रचनाकार : Niaz Wahedi
- प्रकाशन : Niaz wahedi (2003)
- संस्करण : 2003
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