मिर्ज़ा-'ग़ालिब'
राज़दान-ए-ज़िंदगी ऐ तर्जुमान-ए-ज़िंदगी
है तिरा हर लफ़्ज़ ज़िंदा दास्तान-ए-ज़िंदगी
हर तबस्सुम से तिरे पैदा फ़ुग़ान-ए-ज़िंदगी
हर फ़ुग़ाँ तेरी नशीद-ए-गुलसितान-ए-ज़िंदगी
गुलशन-ए-हुस्न-ओ-वफ़ा की आबियारी तुझ से है
ख़ाक के ज़र्रों को फ़ख़्र-ए-ताजदारी तुझ से है
दौर-ए-मुस्तक़बिल पे दुनिया के निगाहें थीं तिरी
रहबर-ए-राह-ए-अमल दिल-दोज़ आहें थीं तिरी
सीना-ए-इल्म-ए-हक़ीक़त में पनाहें थीं तिरी
अर्श से भी और आगे जल्वा-गाहें थीं तिरी
काम था तुझ को न मुतलक़ हस्ती-ए-नाकाम से
थी नवा वाबस्ता तेरी पर्दा-ए-इलहाम से
फ़लसफ़े की ख़ूबसूरत तर्जुमानी तू ने की
दश्त-ए-हू में आँसुओं से बाग़बानी तू ने की
अपनी आँखों से मुसलसल ख़ूँ-फ़िशानी तू ने की
मुद्दतों मुल्क-ए-सुख़न पर हुक्मरानी तू ने की
रूह मुतलक़ जज़्ब थी गोया तिरे एहसास में
क़ुद्स के नग़्मे निहाँ थे पर्दा-ए-अन्फ़ास में
नुत्क़ को तू ने दिया पैराया-ए-सोज़-ओ-गुदाज़
ख़ून से कर के वुज़ू तू ने पढ़ी अक्सर नमाज़
गूँज उट्ठा तेरे नग़्मों से हरीम-ए-हुस्न-ओ-नाज़
आज तक महफ़ूज़ है हर दिल में तेरा सोज़-ओ-साज़
आलम-ए-बाला से इक पैग़ाम-ए-नौ लाता था तू
रूह की गहराइयों तक उस को पहुँचाता था तू
मय-कदा था तेरा यकसर सोज़ मुतलक़ साज़ भी
थी मय-ए-हिन्दी भी साग़र में मय-ए-शीराज़ भी
तू हक़ीक़त फ़हम भी था आश्ना-ए-राज़ भी
रूह की आवाज़ थी गोया तिरी आवाज़ भी
नक़्श-ए-फ़र्यादी है तेरी शोख़ी-ए-तहरीर का
काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए-तस्वीर का
आह ख़ाक-ए-हिंद में तू देर से ख़्वाबीदा है
ज़ीनत-ए-हर-बज़्म तेरा जल्व-ए-ना-दीदा है
तेरे ग़म में आज भी जान-ए-सुख़न काहीदा है
है तसर्रुफ़ तेरा पैदा और तू पोशीदा है
सोज़ तेरा आग बन कर बज़्म पर छा जाएगा
साज़-ए-हस्ती हश्र तक तेरे ही नग़्मे गाएगा
- Subh-e-Mashriq
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