मोहम्मद का आख़िरी ख़ुत्बा
रोचक तथ्य
This Nazm is inspired from Aslam Ansari's renowned Nazm 'Tamam Dukh hai'
मिरे अज़ीज़ो
ज़मान-ए-हाज़िर के मुंतख़ब बे-मिसाल लोगो
मिरी तरीक़त पे चलने वालो
मिरी मअय्यत में जिस गुज़रगाह पर चले हो
बहुत कठिन थी
क़दम क़दम पर नए हवादिस
तुम्हारे सच का ख़िराज लेने
तुम्हारी रह में खड़े हुए थे
ज़वाल-आमादा लोग
तुम से उरूज की इस घड़ी में
आ आ के पूछते थे
कि जलते सूरज तले अक़ीदे की छाँव कब तक जवाँ रहेगी
ये जाँ-कनी का अज़ाब कितने बरस सहोगे
वो बे-ख़बर थे
कि जो भी इस राह पर चला है
वो जब्र की आहनी फ़सीलों को
संग-ए-मंज़िल समझ के बढ़ता चला गया है
जब तुम्हारा ईमान अपनी तकमील पा चुका है
तुम्हारे अंदर के बुत-कदों के तमाम असनाम
ढह चुके हैं
सफ़र की सारी सऊबतों से गुज़र चुके हो
गवाह रहना
सदाक़तों के अमीन लोगो
गवाह रहना
कि मैं ने सारी अमानतें तुम को सौंप दी हैं
सुनो
कि अब जो मैं कह रहा हूँ
यही वो नुस्ख़ा-ए-कीमीया है
जो ज़ात के बंधनों से
तुम को रिहाई देगा
तुम्हारे अंदर की सब ख़लीजों को पाट देगा
मैं ज़िंदगी की फ़साहतों और बलाग़तों को
समझ के तुम से ये कह रहा हूँ
समाअ'तें और बसारतें क़िबला-रू करोगे
तो देख लेना
बसीरतों के चराग़
ख़ुद ही तुम्हारे अंदर के सारे ताक़चों में जल उठेंगे
तुम्हें ख़बर है?
कि ज़िंदगी अपने ज़ाहिरी ख़द्द-ओ-ख़ाल से कितनी मुख़्तलिफ़ है
कि रूह के पुल तले तुम्हारे वजूद का आरज़ी बहाओ
बड़ी ही सुरअ'त से बह रहा है
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