मुझे कहीं और जाने दो
मैं तुम्हारा दुश्मन हूँ
मैं तुम्हारे जिस्म का जर्सूमा हूँ
लेकिन तुम्हारी मौत आ चुकी है
और मैं ज़िंदा रहना चाहता हूँ
मैं अपने खूँ-रेज़ पंजों से
तुम्हारे चमड़े को काट दूँगा
मैं फिर निकलूँगा
मैं ख़ून हूँ
और ख़ून को मौत नहीं आती
क़ानून की रस्सियों से
तुम ने जो झूला तय्यार किया है
उस के बोसीदा होने पर
तुम्हें घबराहट है
लेकिन मैं सिर्फ़ इतना चाहता हूँ
कि मुझे कहीं और जाने दो
मेरी ज़िंदगी तुम से अलग है
मैं निकलना चाहता हूँ
ख़ूबसूरत दुकानों में क़ीमती सामान हैं
और क़ीमती सामानों में मेरी ज़िंदगी है
और मेरी ज़िंदगी मुझ से दूर है
मुझे उस के क़रीब जाने दो
मेरी रूह उन चीज़ों में है
और मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं ख़्वाब देख रहा हूँ
मुझे कब तक ख़्वाब देखना पड़ेगा
मुझे ख़्वाबों को अपने हाथों में लेने दो
मेरी आवाज़ बहुत मद्धम है
और ईंटों को सुर्ख़ गर्द बन कर झड़ते हुए तुम ने देखा होगा
वक़्त आवाज़ ही का दूसरा नाम है
और मेरी आँख मद्धम नहीं बहुत तेज़ है
मैं आहिस्ता रूहों
लेकिन
क़दीम पत्थरों की कहानी पढ़ो
नाचना भूल जाओगे
सिर्फ़ झूमने में अजीब कैफ़ियत है
ये आदमी को बहुत अंदर ले कर चली जाती है
और फिर हवाओं की आवाज़
चीज़ों के लिए वक़्त बन जाती है
कि वक़्त हर चीज़ के बदलने का नाम है
बच्चों की तरह शोर मत मचाओ
मदारी वाले को डमरू बजाने दो
और बच्चों को ख़ुश होने दो
और आओ
हम तुम म्यूजियम में चलें
वहीं बातें करेंगे
गुज़रे वक़्तों की बातें
आने वाले दौर की बातें
वहाँ ख़ामोशी होगी
कि भीड़ तो बाज़ारों में चली गई होगी
इस हौल-नाक सन्नाटे वाली जगह से किसी को क्या दिलचस्पी है
उस के सिवा जो चीज़ों के राज़ जानना चाहता है
तुम मेरे साथ आओ
देखो ये म्यूजियम ये ताज-महल ये जामा' मस्जिद
ये वैशाली
ये अशोक का अगम कुआँ
ये बुध का मुजस्समा
और ये औरंगज़ेब की बुझती हुई तलवार
और ये वो जहाज़
जिस से अंग्रेज़ बंगाल में उतरे थे
और ये एक इंसान के क़दमों का निशान
कितना हक़ीर
कितना छोटा
और और ये कहाँ खो गया है
कहीं और गया होगा
इन क़दमों ने किसी और सफ़र का रास्ता हमवार किया होगा
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