कहाँ की ख़ुसरवी आज़ादगी सरमस्ती-ओ-शोख़ी
वही अंधा कुआँ ख़न्नास सौतेले रवय्या का
गुज़रते क़ाफ़िलों की आहटों से दूर
जरस की बाँग से महजूर
नहीं ये ज़्यादती है होश में आओ
कोई यूँ कुफ़्र बिकता है
इधर देखो
हवा ज़िंदाँ की क्या है क्या बना देती है इंसाँ को
अगर ज़िंदाँ हो क़ज़्ज़ाक़ों उठाई ग़ैरों का मस्कन
वो ज़िंदाँ और है लेकिन
नशेमन-गीर अर्बाब-ए-हिमम जिस में
वही तो ख़ूब-तर महबूब-तर उस की निगाहों में है
ऐसे जश्न-ए-दावत ख़्वान-ए-ने'मत है
जहाँ उस की तुलूअ' सुब्ह-ए-सादिक़ सी नुमूद
इक आज का मोहरा
बिसात-ए-बज़्म की रौनक़
सलाख़ों में मुक़फ़्फ़ल या सलाख़ों पार
खुली दुनिया में जो ऐसा मुबर्रा
मुआसिर इल्लतों से
ज़ाहिर-ओ-बातिन सलामत है
वही ला-रैब दारा-ए-करामत है नवा-पैरा