रौशनी गुल न करो
रौशनी गुल न करो वर्ना किसी सोग का ज़हर
इन दरीचों के हसीं रंग पे छा जाएगा
सख़्त-जाँ कोहर की मानिंद फ़ज़ाओं का सुकूत
निकहत-ओ-नूर के आहंग पे छा जाएगा
रूह में तैरता जाता है उजालों का सुरूर
जैसे इन शम्ओं' की एक एक किरन साक़ी है
अभी ढलका ही कहाँ पिछले पहर का आँचल
रौशनी गुल न करो रात अभी बाक़ी है
नुक़रई किरनों के गहवारे में सोई हुई रात
जाने क्या है कि हर आवाज़ पे चौंक उठती है
अजनबी बन के बुलाता है धड़कता हुआ दिल
ज़िंदगी अपने ही अंदाज़ पे चौंक उठती है
रौशनी गुल न करो वर्ना ये सूने दर-ओ-बाम
अपने ही सायों के गिर्दाब में चकराएँगे
मिरी दुनिया से ये थम-थम के गुज़रते लम्हात
दुख की घड़ियों की तरह और भी थम जाएँगे
और बे-ख़्वाब निगाहों का तक़ाज़ा ये है
मुंजमिद लम्हों का शीराज़ा बिखरता जाए
साअ'तें बढ़ती चली जाएँ हवा की सूरत
बहती नद्दी की तरह वक़्त गुज़रता जाए
दोस्तो हमदमो जलने दो ये शमएँ वर्ना
बहके लम्हों का क़दम और बहक जाएगा
मुस्कुराएगा ज़ुबूँ-कार अँधेरों का ग़ुरूर
वक़्त का क़ाफ़िला रस्ते से भटक जाएगा
वक़्त का क़ाफ़िला भटका तो वो रंगीं लम्हा
मुंतज़िर जिस की है ये रात ना आ पाएगा
मुंजमिद रात न पिघली तो वो रंगीं लम्हा
दर्द की बर्फ़ में दम तोड़ के रह जाएगा
वक़्त की राह न रोको न बुझाओ शमएँ
अक्स उजालों का दर-ओ-बाम पे लहराने दो
मुंतज़िर जिस की है ये रात उस इक लम्हे को
दिल की आग़ोश-ए-तमन्ना में सिमट आने दो
रौशनी गुल न करो वर्ना वो लम्हा क्या है
ऊँघते ज़ीने पे अफ़्साने न कह पाएँगे
बोल पाएगा न चिलमन का पुर-असरार सुकूत
बाम-ओ-दर रात का मुँह देखते रह जाएँगे
तीरगी छाई तो ज़ुल्फ़ों का महकता जादू
भूल जाए न कहीं राह मिरे शानों की
रौशनी ही जिन्हें परवान चढ़ा सकती है
सुर्ख़ियाँ मुझ से न छिन जाएँ इन अफ़्सानों की
रौशनी गुल न करो वर्ना वो रंगीं लम्हा
दिल की आग़ोश-ए-तमन्ना में न आ पाएगा
सहन के क़दमों पे ज़ीनों की जबीं है लेकिन
तीरगी छाई तो ये फ़ासला बढ़ जाएगा
बात मानो कि अंधेरे के थपेड़े खा कर
मेरी उम्मीदों के फ़ानूस भी बुझ जाएँगे
रौशनी गुल न करो वर्ना वो लम्हा क्या है
ऊँघते ज़ीने पे अफ़्साना न कह पाएँगे
तीरगी छाई तो फिर सुब्ह न हो पाएगी
रात के बा'द फिर इक रात चली आएगी
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