शब डूब गई
फिर घोर अमावस
रात में कोई
दीप जला
इक धीमे धीमे
सन्नाटे में
फूल हिला
कोई भेद खुला
और बोसीदा
दीवार पे बैठी
याद हँसी
इक हूक उठी
इक पत्ता टूटा
सरसर करती टहनी से
इक ख़्वाब गिरा
और काँच की
दर्ज़ों से
किरनों का
जाल उठा
कुछ लम्हे सरके
तारों की
ज़ंजीर हिली
शब डूब गई
- पुस्तक : Khawab Ki Hatheli Per (पृष्ठ 22)
- रचनाकार : Gulnaz Kausar
- प्रकाशन : Matboaat Harf Kaar, Lahore (2012)
- संस्करण : 2012
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