शिकस्त
बॉलकनी से बाहर झाँका
आईने में सूरत देखी
लिपस्टिक से होंट सँवारे
अपनी घड़ी को झूटा समझा
बाहर आ कर वक़्त मिलाया
वक़्त को भी जब सच्चा पाया
ग़ुस्से में दाँत अपने पीसे
रेशम जैसे बाल खिसोटे
सारे ख़त चूल्हे में झोंके
आईने पर पत्थर मारा
इतने में फिर आहट पाई
दौड़ी दौड़ी बाहर आई
लेकिन ख़ुद को तन्हा पाया
आज उस ने फिर धोका खाया!
- पुस्तक : Khala Ki Dhund Me.n Ham Chal Rahe hai.n (पृष्ठ 51)
- रचनाकार : Aftab Shamsi
- प्रकाशन : Aftab Shamsi, Sharib Lodge, Khusro Bagh Road, Rampur-244901 (2008)
- संस्करण : 2008
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