शिकस्त
दीवारें दरवाज़े दरीचे गुम-सुम हैं
बातें करते बोलते कमरे गुम-सुम हैं
हँसती शोर मचाती गलियाँ चुप चुप हैं
रोज़ चहकने वाली चिड़ियाँ चुप चुप हैं
पास पड़ोसी मिलने आना भूल गए
बर्तन आपस में टकराना भूल गए
अलमारी ने आहें भरना छोड़ दिया
संदूक़ों ने शिकवा करना छोड़ दिया
मिट्ठू ''बी-बी रोटी दो'' कहता ही नहीं
सूनी सेज पे दिल बस में रहता ही नहीं
सिंगर की आवाज़ को कान तरसते हैं
घर में जैसे सब गूँगे हैं बस्ते हैं
तुम क्या बिछड़े समय सुहाने बीत गए
लौट आओ मैं हारा लो तुम जीत गए!
- पुस्तक : Raat Idhar Udhar Rooshan (पृष्ठ 54)
- रचनाकार : Mohd Alvi
- प्रकाशन : Urdu Sahitya Acadami, Gujrat (1995)
- संस्करण : 1995
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