शो'रा-ए-पाकिस्तान का ख़ैर-मक़्दम
रोचक तथ्य
(This Nazm was recited at the Indo-Pak Mushaira in Delhi)
ये वक़्त नहीं क़िस्सा-ए-मुहताज-ओ-ग़नी का
ये वक़्त नहीं दिल-दही-ओ-दिल-शिकनी का
ये वक़्त नहीं शिकवा-ए-दुनिया-ए-दनी का
ऐ हम-सुख़नो वक़्त है ये हम-सुख़नी का
कब तक ये रहेगा कि रहो हम से जुदा तुम
हम तुम से इधर और उधर हम से ख़फ़ा तुम
ये सच है कि तक़्सीम हुआ मुल्क हमारा
ये सच है कि ऊँचा हुआ नफ़रत का सितारा
ये सच है कि नफ़रत का हुआ आम इजारा
ये सच है कि नफ़रत ने अदावत का उभारा
हम तुम में जो रिश्ता है वो कब टूट सकेगा
दामन जो अदब का है वो कब छूट सकेगा
ऐ हम-सुख़नो असल में रहबर तो हमीं हैं
मायूस ख़लाइक़ के पयम्बर तो हमीं हैं
जो औज पे रहते हैं वो अख़्तर तो हमीं हैं
मय-पाश जो सब पर हैं वो साग़र तो हमीं हैं
हम चाहें तो सिक्का हक़-ओ-इंसाफ़ का चल जाए
हम चाहें तो तक़दीर-ए-उमम पल में बदल जाए
पैमान-ए-अदब बाँध के इक उम्र गुज़ारी
हम शे'र के ख़ादिम हैं मोहब्बत के पुजारी
वाबस्ता अदब से है हर इक बात हमारी
करने दो जो करते हैं सियासत के मदारी
जो फ़िक्र में है लुत्फ़ फ़िरासत में नहीं है
जो शे'र में जादू है सियासत में नहीं है
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