सूरज की पहली किरन
रोचक तथ्य
(Seep, Karachi, Volume 26, May-June 1973)
सुन ऐ हवा-ए-बे-दिली
अभी तो चश्म-ए-तर में उन की सूरतें
रवाँ-दवाँ हैं जिन के साँस की महक
में जा चुकी बहार का निखार है
कि जिन के ख़्वाब की चमक पलक पलक
बिखरती आरज़ू में पाएदार है
अभी तो उन की ख़ाक को ज़मीन भी नहीं मिली
सुन ऐ हवा-ए-बे-दिली
अगरचे इस दयार में हर-एक-सू
कई रुतों की गुम-शुदा बहार का फ़िशार है
ग़ुबार-ए-इंतिज़ार है
मगर ये ज़र्द घाटियाँ ये कारवान-ए-बे-निशाँ
सफ़र की इंतिहा नहीं
धुआँ धुआँ हैं जिस्म-ओ-जाँ मगर ज़बाँ है गुल-फ़िशाँ
कि दिल अभी मिरा नहीं
नज़र में है वो फ़स्ल-ए-गुल जो अब तलक नहीं खिली
सुन ऐ हवा-ए-बे-दिली
हमें उसी ज़मीन से रिफ़ाक़त-ए-यक़ीन है
मिलेगी किश्त-ए-आरज़ू
कि रौशनी की जुस्तुजू में रौशनी का राज़ है
हमारे इर्द-गिर्द की हर एक शय सवाल है
उन उँगलियों की पोर पोर साहब-ए-कमाल है
अलविदा'अ अलविदा'अ ऐ बे-दिली
कि ये हमारी दोस्ती का नुक़्ता-ए-ज़वाल है
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