ताज
जान-ए-गुलशन और जानान-ए-बहार
जावेदाँ शम-ए-शबिस्तान-ए-बहार
इफ़्तिख़ार-ए-रोज़गार-ए-बे-सबात
यादगार-ए-बज़्म-ए-वीरान-ए-बहार
इक दिमाग़-ए-सनअ'त-ए-मरहूम-ए-हिन्द
इक चराग़-ए-ज़ेर-ए-दामान-ए-बहार
अम्बरीं सब्ज़े पे मुख़्तार-ए-इरम
मरमरीं अफ़सर पे सुल्तान-ए-बहार
वाक़ई ताबीर-ए-ख़्वाब-ए-हुस्न-ओ-इश्क़
आख़िरी तस्वीर-ए-तूफ़ान-ए-बहार
ख़ामुशी का नग़्मा-ए-मव्वाज है
ताज अब भी रिफ़अ'तों का ताज है
सुब्ह-ए-जन्नत की सबाहत इस में है
शाम-ए-गुलशन की लताफ़त इस में है
इस के हर लम्हे में इक ताज़ा बहार
इक नई हर वक़्त जन्नत इस में है
माद्दियत इस को छू सकती नहीं
रूह की गोया हुकूमत इस में है
जल्वा-कारी कम से कम इतनी तो हो
देखिए जब एक नुदरत उस में है
हुस्न की जो माया-ए-मुम्ताज़ थी
अब भी पिन्हाँ वो अमानत इस में है
इशरत-ए-नज़्ज़ारा की मेराज है
ताज अब भी अज़्मतों का ताज है
ताज इक बिजली है लहराती हुई
इक तजल्ली कैफ़ में डूबी हुई
या जबीन-ए-हूर की कोई शिकन
इक बयाज़-ए-नूर में लिपटी हुई
बाम-ओ-दर से गुम्बद-ओ-मीनार से
हर तरफ़ इक चाँदनी फैली हुई
आह ये महफ़िल ज़िया-ओ-हुस्न की
चाँद-तारों से मुरत्तब की हुई
इस के हर गोशे में ज़र्रों की तरह
दौलत-ए-कौनैन है बिखरी हुई
है कहीं नीलम कहीं पुखराज है
ताज अब भी सनअतों का ताज है
वुसअत-ए-कौन-ओ-मकाँ का आइना
जल्वा-ज़ार-ए-कहकशाँ का आइना
जिस को दुनिया खो के रोती ही रही
इस मता-ए-राएगाँ का आइना
एक बज़्म-ए-रफ़्ता का मातम-गुसार
इक निशान-ए-बे-निशाँ का आइना
दिल-कुशा तस्वीर-ए-सुब्ह-ए-अंजुमन
दास्तान-ए-पास्ताँ का आइना
अज़मत-ए-मुमताज़ की इक जल्वा-गाह
शौकत-ए-शाह-जहाँ का आइना
यादगार-ए-महफ़िल-ए-ताराज है
ताज अब भी हैरतों का ताज है
- Subh-e-Mashriq
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