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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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तबर्रुक

अमीर इमाम

तबर्रुक

अमीर इमाम

MORE BYअमीर इमाम

    ये मेरी ज़िंदगी भी एक मज्लिस है

    मोहर्रम वाली मज्लिस

    ये जारी है

    जाने कब तलक जारी रहेगी

    अभी तक तो बड़ी मोटी बयाज़ें हाथ में थामे हुए दो चार नौहा-ख़्वान बाक़ी हैं

    इक तो पहले ही बहुत ताख़ीर इस में हो चुकी थी

    वो काफ़ी देर से आए थे

    जिन को सोज़ पढ़ना था

    सब अपनी अपनी बातें कर रहे थे

    मैं भी इक कोने में बैठा देर तक सुनता रहा सब की

    वो आए सोज़-ख़्वानी की

    और उस के बा'द मौलाना ने भी तक़रीर फ़रमाई

    फ़ज़ाएल आए तो मैं ने भी सब के साथ में ना'रे लगाए

    मसाइब आए तो रोया

    और अब हल्क़े में मातम कर रहा हूँ मैं

    शबीहें क़ुमक़ुमे तुग़रे

    ‘अज़ा-ख़ाने में छाई हर तरफ़ लोबान की ख़ुश्बू

    मुक़द्दस हैं बहुत अच्छे हैं

    लेकिन क्यूँ-कि मातम कर रहा हूँ मैं

    तो मेरे हाथ थकते जा रहे हैं

    मैं दुबला पतला लड़का हूँ

    चलो मेरा 'अक़ीदा ही बहुत कमज़ोर होगा

    मगर मैं चाहता हूँ

    ज़रा सी देर को हल्क़े से हट कर एक सिगरेट फूँक ही आऊँ

    पर ऐसा कर नहीं सकता मैं

    क्यूँकि बानी-ए-मज्लिस ‘अज़ा-ख़ाने के दरवाज़े पे बैठा है

    और तबर्रुक तो उसी को बाँटना है

    तो मातम कर रहा हूँ मैं

    तो मैं मातम करूँगा

    चाहे कुछ हो

    क्यूँ-कि अब सब के बराबर ही तबर्रुक चाहिए मुझ को

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुब्ह-बख़ैर ज़िन्दगी (पृष्ठ 136)
    • रचनाकार :अमीर इमाम
    • प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2018)
    • संस्करण : First

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