मुद्दतों बाद अचानक तुम्हें देखा जो कहीं
तुम में तुम सा कहीं कुछ भी नज़र आया ही नहीं
न वो चेहरा न तबस्सुम न वो भोली आँखें
ज़िंदगी जिन की तमन्ना में गुज़ारी मैं ने
न वो लहजा न तकल्लुम न वो अपनी सी महक
जिस की ख़ुशबू मिरी साँसों में समा जाती थी
देर तक मैं ने कहीं तुम में ही खोजा तुम को
तुम को पाया ही नहीं तुम तो कहीं थे ही नहीं
जो मुकम्मल कभी मेरा था फ़क़त मेरा था
आज उस शख़्स का तुम में कोई टुकड़ा भी नहीं
ये सरापा जो कोई अजनबी दिखता है मुझे
उस में गुज़रे हुए एहसास का रेशा भी नहीं
बरसों पहले किसी शाइ'र ने कहा था शायद
दिल बदलता है तो इंसाँ भी बदल जाते हैं
- पुस्तक : میں اردو بولوں(شعری مجموعہ) (पृष्ठ 38)
- रचनाकार : اجئے سحاب
- प्रकाशन : اردو پریس کلب(یو۔پی۔سی) انٹر نیشنل پبلی کیشنز (2019)
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