तख़्लीक़
सर-सब्ज़ी मस्ती शादाबी झोंकों का मद्धम संगीत
हरे-भरे खेतों में नन्हे मने पौदों की सरसर
मिट्टी के ज़रख़ेज़ बदन की सोंधी सोंधी सी ख़ुश्बू
रू-पहली चमकीली धूप की प्यारी प्यारी सी लज़्ज़त
पेड़ों के ठंडे सायों में शफ़क़त की हल्की सी आँच
पगडंडी के मोड़ पे लहराते आँचल की रंगीनी
जिस्मों में क़ुव्वत की मौजें आँखों में भरपूर चमक
हँसते खेलते नन्हे बच्चे अंग अंग में तर्रारी
ज़रख़ेज़-ओ-शादाब ज़मीं पर हस्ती यूँ लहराती है
जैसे इक मा'सूम सी बच्ची गुड़िया ले कर नाच उठे
सीने बाहें ज़ुल्फ़ें होंट जवाँ जिस्मों की लहराहट
रक़्स-ओ-नग़्मा जाम-ओ-मीना साक़ी की आँखों की थकन
महल-ओ-ऐवाँ गर्मी-ए-लज़्ज़त ख़्वाबों का मसरूर जहाँ
मस्जिद के ऊँचे मीनारे मंदिर का सोने का कलस
शोर-ओ-ग़ौग़ा हंगामे अफ़्साने जैसे मरने के
महकूमी कुल्फ़त शोरिश ज़ख़्मों की बौछारें हर-सू
जंग क़हत बीमारी हसरत जीने वालों की दौलत
रंग रंग के परचम ज़ुल्म-ओ-तशद्दुद के सारे सामाँ
जीने वालों की दुनिया हर लम्हा रंग बदलती है
ख़स्ता इम्कानात की कड़ियाँ टूट के गिरती हैं
आबादी और वीराना मफ़्हूम बदलते रहते हैं
दुखती रोती धरती पर हस्ती शोर मचाती है
जैसे इक नन्ही बच्ची शफ़क़त की भूकी चीख़ उठे
आज मगर सीने में ये एहसास धड़कता है पैहम
मैं उस दौर का इंसाँ हूँ जिस में सारे इंसानों ने
अपने जीते-जागते अज़्म अम्न-ओ-सुकूँ की क़ुव्वत से
एक नए इम्कान की शम्अ' रौशन की है धरती पर
एक नई मंज़िल की जानिब अपने क़दम बढ़ाए हैं
क़ुव्वत मेहनत और मसर्रत के रस्ते अपनाए हैं
एहसासात की तस्वीरें ये साए दौड़ते लम्हों के
धरती की तख़्लीक़ हैं इस की गोद में फलते-फूलते हैं
- पुस्तक : Lambi Barish (पृष्ठ 32)
- रचनाकार : Balraj Komal
- प्रकाशन : Sahitya Akademi, New Delhi (2002)
- संस्करण : 2002
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