तस्वीर-ए-ख़याली
जब अंधेरा हुआ हर सू हुई ख़िल्क़त ख़ामोश
जब तअक़्क़ुल से गई छूट हुकूमत की इनाँ
मिट चला था तिरे अरमान का जब जोश-ओ-ख़रोश
सब्र का यास ने जब आन के पकड़ा दामाँ
ग़म के बाइ'स हुआ जब मिस्ल-ए-शब-ए-तार दिमाग़
दिल में और अक़्ल में बरपा हुई जंग-ओ-तकरार
लहरें लेने लगा जिस वक़्त तमन्ना का चराग़
यास का देव जब आ कर हुआ सीने पे सवार
जेब-ए-हस्ती के उड़ा चाहते ही थे पुर्ज़े
उस घड़ी क़ल्ब के अंदर हुई तू जल्वा-नुमा
ऐसी चमकी तिरी तस्वीर-ए-ख़याली जैसे
आसमाँ पर शब-ए-तारीक में तन्हा तारा
ऐ मुनव्वर-कुन-ए-तारीकी-ए-चश्म-ए-आशिक़
ऐ मुदावा-कुन-ए-आलाम-एदिल-ए-हिज्र-नसीब
ऐ ब-यक शो'बदा ज़ाइल-कुन-ए-ख़श्म-ए-आशिक़
ऐ ब-ज़ाहिर तू बहुत दूर मगर दिल से क़रीब
मेहर-ओ-मह से है मुबारक कहीं तेरी तस्वीर
छेद सकतीं नहीं बदली को शुआएँ उन की
ऐसी ज़ुल्मत को मिटा देती है तेरी तनवीर
जो मिटाए न मिटे रौशनी हो कोई सी
आए तूफ़ान गिरे बर्क़ कि बादल बरसे
तेरी उल्फ़त का शजर टल नहीं सकता है कभी
ज़लज़ला आए ज़मीं को कि फ़लक टूट पड़े
पर ये मुमकिन नहीं हो तेरी मोहब्बत में कमी
हाँ मगर सुन ले तू ऐ हुस्न की मय से सरशार
ख़ार-ख़ार-ए-अलम-ए-हिज्र से हूँ सख़्त हज़ीं
याँ ये सुन ले मिरे सरमस्त-ए-अदा ख़ुश-गुफ़्तार
घुलते घुलते तिरे ग़म में हूँ मैं अब मर्ग-क़रीं
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