तज़ाद
ज़मीन घूमती है रोज़ अपने मेहवर पर
फ़लक खड़ा है उसी तरह सर उठाए हुए
दिनों के पीछे लगी हैं उसी तरह रातें
सफ़र है जारी उसी तरह अब भी लम्हों का
हवा के दोश पे ख़ुशबू के क़ाफ़िले अब भी
रुतें बदलने का पैग़ाम ले के आते हैं
हमारे बीच मगर फ़ासले जो क़ाएम हैं
किसी तरह नहीं कम होते बढ़ते जाते हैं!
- पुस्तक : Khala Ki Dhund Me.n Ham Chal Rahe hai.n (पृष्ठ 4)
- रचनाकार : Aftab Shamsi
- प्रकाशन : Aftab Shamsi, Sharib Lodge, Khusro Bagh Road, Rampur-244901 (2008)
- संस्करण : 2008
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