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ये इश्क़-नगर वो बस्ती है

अरशद महमूद अरशद

ये इश्क़-नगर वो बस्ती है

अरशद महमूद अरशद

MORE BYअरशद महमूद अरशद

    ये इश्क़-नगर वो बस्ती है

    जहाँ रोज़-ए-अज़ल से खेल है ये

    जो दिल में अरमाँ पलते हैं

    वही दिल की आग में जलते हैं

    जो सपने आँखें बुनती हैं

    वही किरची किरची चुनती हैं

    यहाँ रूठती हैं जब तक़दीरें

    फिर चलती नहीं हैं तदबीरें

    यहाँ पाँव में छन-छन करती हैं

    अरमाँ हसरत की ज़ंजीरें

    यहाँ दिल में जो बस्ते हैं

    वही दिल को कर डसते हैं

    वो पहले पागल करते हैं

    फिर पागल-पन पे हँसते हैं

    यहाँ बिन बादल बरसात रहे

    यहाँ ग़म की काली रात रहे

    जो इस बस्ती में जाए

    कोई नाम रहे ज़ात रहे

    ये इश्क़-नगर वो बस्ती है

    जहाँ रोज़-ए-अज़ल से खेल है ये

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