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उर्दू के सर्वश्रेष्ठ मुख़्तसर उद्धरण

उर्दू शायरों और अदीबों

के मुख़्तसर अक़्वाल व उद्धरण का ये संग्रह आपकी ज़िंदगी में फ़िक्र और सोच की नई राहें खोलने और नई समतों की तरफ़ रहनुमाई में मदद करेगा। हमने इस संग्रह में विभिन्न विषयों पर कहे गए, लिखे गए तमाम अच्छे और मशहूर मुख़्तसर कथन शामिल करने की कोशिश की है।

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दुनिया में जितनी लानतें हैं, भूक उनकी माँ है।

सआदत हसन मंटो

दिल ऐसी शैय नहीं जो बाँटी जा सके।

सआदत हसन मंटो

भूक किसी क़िस्म की भी हो, बहुत ख़तरनाक है।

सआदत हसन मंटो

ग़ुस्सा जितना कम होगा उस की जगह उदासी लेती जाएगी।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी

जिस्म दाग़ा जा सकता है मगर रूह नहीं दाग़ी जा सकती।

सआदत हसन मंटो

दौलत से आदमी को जो इज़्ज़त मिलती है वह उसकी नहीं, उसकी दौलत की इज़्ज़त होती है।

प्रेमचंद

हर औरत वेश्या नहीं होती लेकिन हर वेश्या औरत होती है। इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए।

सआदत हसन मंटो

ज़बान बनाई नहीं जाती, ख़ुद बनती है और ना इन्सानी कोशिशें किसी ज़बान को फ़ना कर सकती हैं।

सआदत हसन मंटो

हर दुख, हर अज़ाब के बाद ज़िंदगी आदमी पर अपना एक राज़ खोल देती है।

मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी

मैं एक मज़दूर हूँ, जिस दिन कुछ लिख ना लूँ उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक़ नहीं।

प्रेमचंद

हर हसीन चीज़ इन्सान के दिल में अपनी वक़्अत पैदा कर देती है। ख़्वाह इन्सान ग़ैर-तरबियत-याफ़्ता ही क्यों ना हो?

सआदत हसन मंटो

किताबों की दुनिया मुर्दों और ज़िंदों दोनों के बीच की दुनिया है।

फ़िराक़ गोरखपुरी

मायूसी मुम्किन को भी ना-मुम्किन बना देती है।

प्रेमचंद

वेश्या पैदा नहीं होती, बनाई जाती है, या ख़ुद बनती है।

सआदत हसन मंटो

शाइ'री का आला-तरीन फ़र्ज़ इन्सान को बेहतर बनाना है।

प्रेमचंद

माज़ी चाहे जैसा हो उसकी याद हमेशा ख़ुशगवार होती है।

प्रेमचंद

क़ौमों को जंगें तबाह नहीं करतीं। कौमें उस वक़्त तबाह होती हैं, जब जंग के मक़ासिद बदल जाते हैं।

इन्तिज़ार हुसैन

हर दौर अदब पैदा करने के अपने नुस्ख़े साथ लेकर आता है।

इन्तिज़ार हुसैन

हमें हुस्न का मेयार तब्दील करना होगा। अभी तक उसका मेयार अमीराना और ऐश परवराना था।

प्रेमचंद

कहते हैं सिगरेट के दूसरे सिरे पर जो राख होती है दर-अस्ल वो पीने वाले की होती है।

मोहम्मद यूनुस बट

आज का लिखने वाला ग़ालिब और मीर नहीं बन सकता। वो शायराना अज़्मत और मक़्बूलियत उसका मुक़द्दर नहीं है। इसलिए कि वह एक बहरे, गूँगे, अंधे मुआशरे में पैदा हुआ है।

इन्तिज़ार हुसैन

जो चीज़ मसर्रत-बख़्श नहीं हो सकती, वह हसीन नहीं हो सकती।

प्रेमचंद

सोज़-ओ-गुदाज़ में जब पुख़्तगी जाती है तो ग़म, ग़म नहीं रहता बल्कि एक रुहानी संजीदगी में बदल जाता है।

फ़िराक़ गोरखपुरी

आप दिमाग़ी तौर पर अलील हैं, तो जिस्मानी मज़बूती से आप शिफ़ा नहीं पा सकते।

फ़िक्र तौंसवी

तन्हाई का एहसास अगर बीमारी बन जाये तो उसी तरह आरज़ी है जैसे मौत का ख़ौफ़।

सय्यद एहतिशाम हुसैन

अदब की बेहतरीन तारीफ़ तन्क़ीद-ए-हयात है। अदब को हमारी ज़िंदगी पर तब्सेरा करना चाहिए।

प्रेमचंद

ग़ज़ल हमारी सारी शायरी नहीं है, मगर हमारी शायरी का इत्र ज़रूर है।

आल-ए-अहमद सुरूर

उर्दू शायरी का पस-मंज़र पूरी ज़िंदगी है।

सय्यद एहतिशाम हुसैन

ताज महल उसी बावर्ची के ज़माने में तैयार हो सकता था जो एक चने से साठ खाने तैयार कर सकता था।

इन्तिज़ार हुसैन

हर माक़ूल आदमी का बीवी से झगड़ा होता है क्योंकि मर्द औरत का रिश्ता ही झगड़े का है।‏

राजिंदर सिंह बेदी

दर-अस्ल शादी एक लफ़्ज़ नहीं पूरा फ़िक़्रा है।

शफ़ीक़ुर्रहमान

रिश्तों की तलाश एक दर्द भरा अमल है। मगर हमारे ज़माने में शायद वो ज़्यादा ही पेचीदा और दर्द भरा हो गया है।

इन्तिज़ार हुसैन

ज़बान शुऊर का हाथ-पैर है।

फ़िराक़ गोरखपुरी

आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन उसका अहंकार है।

प्रेमचंद

ज़िंदगी के ख़ारिजी मसाइल का हल शायरी नहीं, लेकिन वो दाख़िली मसाइल का हल ज़रूर है।

फ़िराक़ गोरखपुरी

क़ौमी ज़बान के बग़ैर किसी क़ौम का वुजूद ही ज़हन में नहीं आता।

प्रेमचंद

अदब इंक़लाब नहीं लाता बल्कि इंक़लाब के लिए ज़हन को बेदार करता है।

आल-ए-अहमद सुरूर

हर मतरूक (अप्रचलित) लफ़्ज़ एक गुमशुदा शहर है और हर मतरूक उस्लूब-ए-बयान (शैली) एक छोड़ा हुआ इलाक़ा।

इन्तिज़ार हुसैन

अगर ये बात ठीक है कि मेहमान का दर्जा भगवान का है तो मैं बड़ी नम्रता से आपके सामने हाथ जोड़ कर कहूँगा कि ‎मुझे ‎‏भगवान से भी नफ़रत है।‏

राजिंदर सिंह बेदी

रूमानी शाइ'री और रूमानी अफ़साना उर्दू अदब के सीम-ज़दा इलाक़े हैं।

इन्तिज़ार हुसैन

फ़न-कार को अवाम की अदालत में अपने हर अमल के लिए जवाब देना होगा।

प्रेमचंद

अलिफ़ लैला को बस यूँ समझ लीजिए कि सारे अरबों ने या एक पूरी तहज़ीब ने उसे तस्नीफ़ किया है।

इन्तिज़ार हुसैन

जो दरवाज़े मआशी कश्मकश ने एक दफ़ा खोल दिए हों, बहुत मुश्किल से बंद किए जा सकते हैं।

सआदत हसन मंटो

ग़म का भी एक तरबिया पहलू होता है और निशात का भी एक अलमिया पहलू होता है।

फ़िराक़ गोरखपुरी

इंसानी उ'म्र की सिर्फ़ तीन ही सूरतें हैं। जो आनी, जवानी और जो आई।

मोहम्मद यूनुस बट

ग़ज़ल इबारत, इशारत और अदा का आर्ट है।

आल-ए-अहमद सुरूर

अपनी आरज़ू की उम्र को तवील बनाना चाहो, तो उसे कभी पूरा होने दो।

फ़िक्र तौंसवी

किसी क़ौम को अहमक़ बनाना हो तो उस क़ौम के बच्चों को आसान और सहज लफ़्ज़ों के बदले जबड़ा तोड़ लफ़्ज़ घुँटवा दीजिए। सब बच्चे अहमक़ हो जाएंगे।

फ़िराक़ गोरखपुरी

अस्ल में हमारे यहाँ मौलवियों और अदीबों का ज़हनी इर्तिक़ा (बौद्धिक विकास) एक ही ख़ुतूत पर हुआ है।

इन्तिज़ार हुसैन

अफ़्साने का मैं तसव्वुर ही यूँ करता हूँ जैसे वो फुलवारी है, जो ज़मीन से उगती है।

इन्तिज़ार हुसैन

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