मक़ाम-ए-वस्ल तो अर्ज़-ओ-समा के बीच में है
मैं इस ज़मीन से निकलूँ तू आसमाँ से निकल
अभिषेक शुक्ल का जन्म उत्तर प्रदेश के ज़िला ग़ाज़ीपुर में हुआ मगर उनकी उच्च शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ से उन्होंने एम.कॉम की डिग्री हासिल की| पिछले 10 -15 वर्षों के बीच जिन लोगों ने ग़ज़ल के मैदान में अपनी छाप छोड़ी है, उनमें अभिषेक शुक्ला एक अहम नाम हैं। उनकी शायरी में ज़िन्दगी से भरपूर इश्क़ की झलक मिलती है, इसके साथ ही ज़बान और क्राफ़्ट का एक बेहतरीन नमूना उनकी शायरी में मौजूद है। उन्होंने बहुत जल्द ही तमाम बड़े आलाचकों का ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित किया है, इसके साथ ही नए लिखने वालों के लिए एक रोल मॉडल के तौर पर भी देखे जाते हैं। ज़बान की बारीकियों और अरूज़ पर गहरी निगाह रखते हैं और कुशलता के साथ चुस्त और चुटीले व्यंग्य के लिए भी चर्चा में हैं. लखनऊ शहर की तमाम ख़ूबसूरती और उसकी संस्कृति को अपने वजूद के अंदर समो कर एक अध्यात्म की शक्ल देने में मशग़ूल हैं। उन पहला काव्य संग्रह ''हर्फ़-ए-आवारा'' 2020 में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ, जिसने बहुत जल्द अदबी हल्क़े में अपनी पहचान बनाई। आप को उर्दू कल्चर की जीती-जागती मिसाल भी कहा जा सकता है। इन दिनों भारतीय स्टेट बैंक की मुलाज़िमत में जान और वक़्त निकाल रहे हैं|