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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अहमद महफ़ूज़

1966 | दिल्ली, भारत

प्रसिद्ध आलोचक और शायर, मीर तक़ी मीर पर आलोचनात्मक लेखन के लिए मशहूर. जामिया मिलिया इस्लामिया के उर्दू विभाग से सम्बद्ध

प्रसिद्ध आलोचक और शायर, मीर तक़ी मीर पर आलोचनात्मक लेखन के लिए मशहूर. जामिया मिलिया इस्लामिया के उर्दू विभाग से सम्बद्ध

अहमद महफ़ूज़

ग़ज़ल 52

अशआर 41

सुना है शहर का नक़्शा बदल गया 'महफ़ूज़'

तो चल के हम भी ज़रा अपने घर को देखते हैं

उस से मिलना और बिछड़ना देर तक फिर सोचना

कितनी दुश्वारी के साथ आए थे आसानी में हम

जो करना हो वही काम तुम्हारे लिए है

मेरे हिस्से का भी आराम तुम्हारे लिए है

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बिछड़ के ख़ाक हुए हम तो क्या ज़रा देखो

ग़ुबार जा के उसी कारवाँ से मिलता है

कहाँ किसी को थी फ़ुर्सत फ़ुज़ूल बातों की

तमाम रात वहाँ ज़िक्र बस तुम्हारा था

लेख 1

 

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