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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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आलमताब तिश्ना

1935 - 1991 | कराची, पाकिस्तान

आलमताब तिश्ना

ग़ज़ल 16

अशआर 15

विसाल-ए-यार की ख़्वाहिश में अक्सर

चराग़-ए-शाम से पहले जला हूँ

नफ़रत भी उसी से है परस्तिश भी उसी की

इस दिल सा कोई हम ने तो काफ़र नहीं देखा

हम अपने इश्क़ की अब और क्या शहादत दें

हमें हमारे रक़ीबों ने मो'तबर जाना

हर दौर में रहा यही आईन-ए-मुंसिफ़ी

जो सर झुक सके वो क़लम कर दिए गए

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इस राह-ए-मोहब्बत में तू साथ अगर होता

हर गाम पे गुल खिलते ख़ुशबू का सफ़र होता

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पुस्तकें 2

 
 

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