अली ज़रयून के शेर
अदा-ए-इश्क़ हूँ पूरी अना के साथ हूँ मैं
ख़ुद अपने साथ हूँ यानी ख़ुदा के साथ हूँ मैं
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बात भी कीजिए देख भी लीजिए
देख भी लीजिए बात भी कीजिए
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अस्र के वक़्त मेरे पास न बैठ
मुझ पे इक साँवली का साया है
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सुकूत-ए-शाम का हिस्सा तू मत बना मुझ को
मैं रंग हूँ सो किसी मौज में मिला मुझ को
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क्या है जो मुझे हुक्म नहीं मानने आते
दीवाना तो होता ही बग़ावत के लिए है
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मैं पाँव धो के पियूँ यार बन के जो आए
मुनाफ़िक़ों को तो मैं मुँह लगाने वाला नहीं
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लड़ने के लिए है न नसीहत के लिए है
जिस 'उम्र में तुम हो वो मोहब्बत के लिए है
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डरे हुओं ने तुम्हें भी डरा दिया वर्ना
ख़ुदा तो प्यार सिखाता है कुछ नहीं कहता
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वा'इज़ मैं कोई चोर हूँ जो तुझ से दबूँगा
मुँह तोड़ के रख दूँगा अगर तल्ख़ हुआ तू
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