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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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फ़रीद जावेद

1927 - 1977 | कराची, पाकिस्तान

फ़रीद जावेद

ग़ज़ल 20

अशआर 4

हमें भी अपनी तबाही पे रंज होता है

हमारे हाल-ए-परेशाँ पे मुस्कुराओ नहीं

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गुफ़्तुगू किसी से हो तेरा ध्यान रहता है

टूट टूट जाता है सिलसिला तकल्लुम का

कितनी रंगीनियों में तेरी याद

किस क़दर सादगी से आती है

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तरब का रंग मोहब्बत की लौ नहीं देता

तरब के रंग में कुछ दर्द भी समो लें आज

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