मिर्ज़ा दाऊद बेग के शेर
शीशा-ए-आबरू सँभाल ऐ दिल
दौर उल्टा चला है दुनिया का
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देखना है पिया की ज़ुल्फ़-ए-दराज़
या इलाही मुझे दे उम्र-ए-दराज़
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'वली' सानी नहीं दाऊद लेकिन
ग़ज़ल कहता है हर इक बा-तलाज़ुम
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सुन नसीहत मिरी ऐ ज़ाहिद-ए-ख़ुश्क
अश्क के आब बिन वुज़ू मत कर
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पिव बिना दिल मिरा उदासी है
गाह जोगी है गाह सन्यासी है
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हर किताब-ए-सोहबत-ए-रंगीं के मअ'नी देख कर
फ़र्द-ए-तन्हाई के मज़मूँ कूँ किया हूँ इंतिख़ाब
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यक क़दम राह-ए-दोस्त है 'दाऊद'
लेकिन अफ़्सोस पा-ए-बख़्त है लंग
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तुझ हिज्र की अगन कूँ बूझाने ऐ संग दिल
कोई आब-ज़न-रफ़ीक़ ब-जुज़ चश्म-ए-तर नहीं
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टैग : हिज्र
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दिया उस ख़ुश-नयन ने रात कूँ मुझ कूँ सुराग़ अपना
किया मैं रोग़न-ए-बादाम सूँ रौशन चराग़ अपना
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साफ़ दिल हो गर है तुझ कूँ ख़्वाहिश-ए-तर्क-ए-हवा
आब-ए-आईना उपर आता नहीं हरगिज़ हबाब
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रक़म करने कूँ वस्फ़-ए-ज़ुल्फ़-ए-दिलदार
मुझे हर वक़्त मश्क़-ए-लाम है बस
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सर काट क्यूँ जलाते हैं रौशन दिलाँ के तईं
आहन-दिली पे ख़ल्क़ की ख़ंदाँ हूँ मिस्ल-ए-शम्अ'
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