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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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मोहसिन ज़ैदी

1935 - 2003 | लखनऊ, भारत

बहराइच में जन्मे जाने माने प्रगतिशील शयर / फ़िराक़ के शागिर्द

बहराइच में जन्मे जाने माने प्रगतिशील शयर / फ़िराक़ के शागिर्द

मोहसिन ज़ैदी

ग़ज़ल 39

अशआर 13

जैसे दो मुल्कों को इक सरहद अलग करती हुई

वक़्त ने ख़त ऐसा खींचा मेरे उस के दरमियाँ

बिछड़ने वालों में हम जिस से आश्ना कम थे

जाने दिल ने उसे याद क्यूँ ज़ियादा किया

कोई कश्ती में तन्हा जा रहा है

किसी के साथ दरिया जा रहा है

जान कर चुप हैं वगरना हम भी

बात करने का हुनर जानते हैं

ये ज़ुल्म देखिए कि घरों में लगी है आग

और हुक्म है मकीन निकल कर घर से आएँ

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पुस्तकें 7

 

चित्र शायरी 3

 

ऑडियो 10

अगर चमन का कोई दर खुला भी मेरे लिए

कोई कश्ती में तन्हा जा रहा है

कोई दीवार न दर जानते हैं

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