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कहानी
प्रेमचंद
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तंज़-ओ-मज़ाह
फ़िराक़ गोरखपुरी
तंज़-ओ-मज़ाह
“ख़लक-ए-ख़ुदा की ज़बान किसने पकड़ी है। लोगों का मुंह तो चेहल्लुम के निवाले ही से बंद होता है।” (3)...