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सैयद क़ुव्वत अली
लेखक
ऐनुल क़ुजात हमदानी
क़र्रतुल ऐन
संपादक
मीर क़ुव्वत अली
ख़त ऐसा लिखा है कि नगीने से जड़े हैंवो हाथ कि जिस ने कोई ज़ेवर नहीं देखा
मगर लिखवाए कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाएहुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले
तुझ को मालूम है लेता था कोई नाम तिराक़ुव्वत-ए-बाज़ू-ए-मुस्लिम ने किया काम तिरा
तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का थान था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था
जो भरोसा था उसे क़ुव्वत-ए-बाज़ू पर थाहै तुम्हें मौत का डर उस को ख़ुदा का डर था
शायरी में ख़त का मज़मून आशिक़, माशूक़ और नामा-बर के दर्मियान की एक दिल-चस्प कहानी है। इस कहानी को शाइरों के तख़य्युल ने और ज़्यादा रंगा-रंग बना दिया है। अगर आपने ख़त को मौज़ू बनाने वाली शायरी नहीं पढ़ी तो गोया आप क्लासिकी शायरी के एक बहुत दिल-चस्प हिस्से से ना-आशना हैं। हम एक छोटा सा इन्तिख़ाब यहाँ पेश कर रहे हैं उसे पढ़िए और आम कीजिए।
उर्दू इमला और रस्म-उल-ख़त
फ़रमान फ़तेहपुरी
भाषा
ग़ालिब
टी एन राज़
व्याख्या
Qurrat-ul-Ain Haider Ki Muntakhab Kahaniyan
क़ुर्रतुलऐन हैदर
कहानियाँ
Tahira Qurrat-ul-Ain
मार्था रूट
जीवनी
Urdu Mein Adabi Khat Nigari Ki Riwayat Aur Ghalib
बेगम नीलोफ़र अहमद
पत्र
उर्दू रस्म-उल-ख़त
शीमा मजीद
संकलन
उर्दू ज़बान और उर्दू रस्मुल ख़त
फ़तेह मोहम्मद मालिक
मज़ामीन / लेख
अच्छा ख़त कैसे लिखे
रईस सिद्दीक़ी
सीखने के संसाधन
Khat Mein Post Ki Hui Dopaher
मज़हर-उल-इस्लाम
अफ़साना
Qurrat-ul-Ain Haidar Shakhsiyat Aur Fan
हुमायूँ ज़फ़र ज़ैदी
Urdu Rasm-ul-Khat
मोहम्मद सज्जाद मिर्ज़ा
Qurrat-ul-Ain Haidar Ka Fan
अब्दुल मुग़नी
फ़िक्शन तन्क़ीद
Aur Line Kat Gai
अन्य
Khat-e-Marmooz
फ़हमीदा रियाज़
Khat-o-Khattati
मुमताज़ हुसैन जौनपुरी
सुलेखन
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिनदो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में
ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्तवो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में
बड़ा एहसान हम फ़रमा रहे हैंकि उन के ख़त उन्हें लौटा रहे हैं
कट मरे अपने क़बीले की हिफ़ाज़त के लिएमक़्तल-ए-शहर में ठहरे रहे जुम्बिश नहीं की
किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही हैकि ये उदासी हमारे जिस्मों से किस ख़ुशी में लिपट रही है
ग़ैर फिरता है लिए यूँ तिरे ख़त को कि अगरकोई पूछे कि ये क्या है तो छुपाए न बने
दिल-ए-नादाँ न धड़क ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़ककोई ख़त ले के पड़ोसी के घर आया होगा
फ़रेब दे के तिरा जिस्म जीत लूँ लेकिनमैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊँगा
ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरेंजो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें
उसे तुम फ़ोन करते और ख़त लिखते रहे होगेन जाने तुम ने कितनी कम ग़लत उर्दू लिखी होगी
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