aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ترجمہ"
इदारा तालीफ़-ओ-तर्जुमा जामिआ पंजाब, लाहौर
पर्काशक
इदारा-ए-तस्नीफ़-ओ-तालीफ़-ओ-तर्जुमा, कराची
मजलिस-ए-तरजुमा, लाहाैर
मकतबा तरजुमा कुरआन नाला रोड
मकतबा तर्जुमान, उर्दू बाज़ार, दिल्ली
इदारा तरजुमान-उल-क़ुरआन, लाहौर
दफ़तर तरजुमानुल क़ुरान, पठानकोट
तरजुमान-उल-क़ुरान, दिल्ली
"क्या?" मैं लरज़ते हुए हाथ को परे धकेलना चाहा। "क्या है?"और तारीकी का भूत बोला, "थाने वालों ने रानो को गिरफ़्तार कर लिया इसका फ़ारसी में तर्जुमा करो।"
जोगिंदर सिंह ने अपनी बीवी की इस अदा पर ग़ौर न किया। वो दरअसल हरिंदरनाथ त्रिपाठी को अपने यहां बुलाने और उसे कुछ देर ठहराने की बाबत सोच रहा था। “अमृत, मैं कहता हूँ त्रिपाठी साहिब को दा’वत देदी जाये, क्या ख़याल है तुम्हारा... लेकिन मैं ये सोचता हूँ क्या पता है वो इनकार करदे... बहुत बड़ा आदमी है, मुम्किन है वो हमारी इस दा’वत को ख़ुशामद समझे।”
आज़ुर्दाइस शे’र के बारे में शिबली ने लिखा है कि क़ुरआन की आयत को हाफ़िज़ से बढ़कर किसी और ने नहीं बयान किया। और ये इस हद तक तो दुरुस्त है ही कि क़ायम ने अगरचे हाफ़िज़ के पहले मिसरे का तर्जुमा कर दिया है और तशबीह भी इस्तेमाल की है, लेकिन उनका शे’र हाफ़िज़ से बहुत कम है। मैं इसकी वजह बयान करता हूँ। क़ायम ने “इश्क़ का बोझ” लिखा है, इसकी जगह हाफ़िज़ ने “बार-ए-अमानत” का इस्तिआरा रखा है। ये और बात है कि ये इस्तिआरा क़ुरआन में भी मौजूद है, इससे इसकी क़द्र कम नहीं होती। “इशक़” का लफ़्ज़ सिर्फ़ दो मफ़हूमों का हामिल है। इश्क़-ए-हक़ीक़ी या इश्क़-ए-मजाज़ी। हाफ़िज़ ने अमानत को इश्क़ का इस्तिआरा बना कर कम से कम इतने मअनी पैदा किए हैं। (1) इश्क़-ए-हक़ीक़ी (2) इश्क़-ए-मजाज़ी (3) मार्फ़त इलाही (4) ख़ुद-आगही (जो अल्लाह की सिफ़त है), (5) तकल्लुफ़ात शरईया व अहकाम-ए-इलाही (6) ज़िंदगी और उसके आलाम (7) अक़्ल। लिहाज़ा इस एक इस्तिआरे ने हाफ़िज़ के मिसरे को ज़्यादा शायरी का हामिल कर दिया।
मियाँ जवाहर लाल, ख़ुश फ़िक्र-ओ-ख़ुश-ख़िसाल जुग-जुग जियो, ता-क़यामत आब-ए-हयात पियो।सुनो साहब! इमाम-उल-हिंद मौलाना अबुल कलाम आज़ाद आए हैं और अपने हमराह दो नुस्खे़ दीवान-ए-ग़ालिब के लाए हैं, जो मुझे अभी मौसूल हुए हैं। एक नुस्ख़ा अली सरदार जाफ़री ने तर्तीब दिया है। दूसरा अर्शी रामपुरी ने मुरत्तब किया है। दोनों ने इख़लास-ओ-मुहब्बत का हक़ अदा किया है। मीर मेह्दी और पण्डित कैफ़ी बैठे हैं, हुक़्क़े के कश चल रहे हैं, हिज्र-ओ-फ़िराक़ के लमहात टल रहे हैं। फ़िज़ा में धुआँ चमक रहा है और पेचवान महक रहा है। कोयलों में आतिश-फ़िशानी है, जिससे चिलम का चेहरा अर्ग़वानी है।
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तर्जुमाترجمہ
translation, interpretation
अनुवाद, भाषान्तर, उल्था, तर्जुमा भी प्रचलित है।
Tarjuma-e-Tuzuk-e-Babri Urdu
ज़हीरुद्दीन बाबर
1924इतिहास
फ़न-ए-तर्जुमा निगारी
ख़लीक़ अंजुम
1996मज़ामीन / लेख
Angrezi Adab Ki Mukhtasar Tareekh
मोहम्मद यासीन
1970समीक्षा / शोध
फ़ल्सफ़-ए-मग़रिब की तारीख़
बर्ट्रैंड रसल
2010दर्शन / फ़िलॉसफ़ी
किताब-उल-हिन्द
अबू रेहान अल-बैरूनी
1941दर्शन / फ़िलॉसफ़ी
Allama Iqbal : Taqreerein, Tahreerein Aur Bayanat
अल्लामा इक़बाल
1999व्याख्यान
तर्जुमा का फ़न और रिवायत
क़मर रईस
1976मज़ामीन / लेख
Heer Waris Shah
सय्यद वारिस शाह
2006शायरी
Pareshaan Hona Chhodiye Jeena Shuru Kijiye
डेल कार्नेगी
1982मनोविज्ञान
Alf Laila
अननोन ऑथर
दास्तान
जंग और अम्न
लेव तालस्तोय
2013नॉवेल / उपन्यास
ग़ालिब इन इंगलिश वर्स
रोशन चुफ़ला
2004अनुवाद
Arasto Se Elliot Tak
जमील जालिबी
1977आलोचना
Homeopathic
डॉ. रेकवेग
होम्योपैथी
Aurat
सिमोन द बोउआर
2013सामाजिक मुद्दे
समझी गई जो बात हमारी ग़लत तो क्यायाँ तर्जुमा कुछ और है आयत कुछ और है
“वल्लाह... किसी रोज़ तुम्हें उनकी तस्वीर दिखलाऊँगा।”दूसरी शाम वो उसके होस्टल के कमरे में आया। तमारा अब तक अपने सूटकेस बंद कर के सामान तर्तीब से नहीं जमा सकी थी। सारे कमरे में चीज़ें बिखरी हुई थीं।
अजे तेरे बंद न है हाय नी असीं मर गएइस दफ़ा भी हस्ब-ए-मामूल काफ़ी दाद मिली। लेकिन दाद की हद तो उस वक़्त हुई जब सरदार साहिब ने ग़ालिब की वो “मुसल्लस” सुनाई जिसकी टेप का मिसरा ये था,
मेरा क़द दराज़ी में अंगुश्तनुमा है। जब मैं जीता था तो मेरा रंग चम्पई था और दीदावर लोग उसकी सताइश किया करते थे। अब जब कभी मुझको वो अपना रंग याद आता है तो छाती पर साँप सा लोट जाता है, जब दाढ़ी मूंछ में बाल सफ़ेद आगए, तीसरे दिन चियूंटी के अंडे गालों पर नज़र आने लगे। इससे बढ़कर ये हुआ कि आगे के दो दाँत टूट गए। नाचार मिस्सी भी छोड़ दी और दाढ़ी भी, मगर ये ...
(8) मुरक्कब तश्बीह, या'नी वो तश्बीह जिसमें मुशाबहत के कई पहलू हों, मुफ़रद तश्बीह से बेहतर है।(9) ये कहना ग़लत है कि इस्तिआ'रे का लफ़्ज़ी तर्जुमा कर दिया जाए तो वो तश्बीह बन जाता है, लेकिन इसमें कोई शुबह नहीं कि इस्तिआ'रे के मुक़ाबले में तश्बीह में लुगवी मअ'नी का उं'सुर ज़ियादा होता है।
फिर उसने कहा, “ मेरा नाम सिद्दीक़ रिज़वी है…लिंडा बाज़ार में जो क़त्ल हुआ था, मैं उससे मुतअ’ल्लिक़ था।”मैंने उस क़त्ल के मुतअ’ल्लिक़ सिर्फ़ सरसरी तौर पर पढ़ा था। लेकिन जब रिज़वी ने अपना तआ’रुफ़ कराया तो मेरे ज़ेहन में ख़बरों की तमाम सुर्खियां उभर आईं।
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
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